श्रीनगर परियोजना का विकल्प

 

श्रीनगर गढ़वाल में निर्मित अलकनंदा जलविद्युत परियोजना (फोटो साभार: गंगा टुडे टीम)
जब हमारे पास श्रीनगर परियोजना का उत्तम विकल्प मौजूद है तो जरुरी नहीं कि डैम बनाकर क्षेत्र को नुक्सान पहुचाया जाए

 

श्रीनगर जलविद्युत परियोजना द्वारा स्थानीय लोगों से जो वादे किये गये थे उन्हें पूरा नहीं किया गया और न ही विद्युत उत्पादन का कोई भी हिस्सा उन्हें दिया जा रहा है. अतः श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के निर्माण से स्थानीय लोगों को कोई भी फ़ायदा नहीं हो रहा है बल्कि उन्हें अपनी भूमि, मंदिरों, रोजगार, स्वास्थ्य, स्वच्छ जल के रूप में नुक्सान झेलना पढ़ रहा है. परियोजना के कारण श्रीकोट में साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है और बीमारियाँ फ़ैल रही है. इस पर सीताराम बहुगुणा जी की एक रिपोर्ट आप निचे देख सकते हैं.

 

 

स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र धारीदेवी को भी उनके मूल स्थान से हटा दिया गया है. श्रीनगर के लोगों के अनुसार नए मंदिर में शक्ति नहीं है, इसलिए परियोजना पर मूल रूप से पुनर्विचार करने की ज़रूरत है.

हमारे पास नदी और स्थानीय लोगों को बिना नुक्सान पहुंचाए बिजली उत्पादन का उत्तम विकल्प मौजूद है. हम नदी के बीचों बीच डीवाईडर बनाकर नदी के जल को दो हिस्सों में विभाजित कर सकते हैं. नदी के जल का एक हिस्सा नहर द्वारा निकल कर बिजली बनाने के लिए ले जाया जाए.और दूसरा हिस्सा पहले की तरह नदी के अविरल प्रवाह को बनाये रखे. स्थानीय लोगों द्वारा सुझाये गए इस विकल्प को यहाँ रिपोर्ट में दिया है. विकल्प निम्न प्रकार से बताया गया है:-

 

रूपारेल में नदी का विभाजन (फोटो साभार: राजेंद्र सिंह )

 

ऊपर दिए गए चित्र में हम देख सकते हैं कि राजस्थान की रूपारेल नदी में नदी के पानी को दो हिस्सों में विभाजित किया गया है, एक हिस्सा अलवर को जाता है और दूसरा हिस्सा भरतपुर को जाता है. इस प्रकार से नीचे दिया गया एक और चित्र है जोकि “गया” का है जहाँ हम साफ़ देख सकते हैं कि नदी के जल का एक हिस्सा नहर द्वारा अलग निकल लिया जाता है और दूसरा हिस्सा अविरल प्रवाहित होता है.

 

गया में नदी का विभाजन (फोटो साभार: वी.जी. भावे)

 

निचे चित्र में हम अलास्का के तज़िमिनिया जलविद्युत परियोजना को देख सकते हैं जिसमे नदी के जल को नहर(intake) द्वारा जलविद्युत टरबाईंस तक ले जाया गया है जिससे कि नदी के प्रवाह में कोई अवरोध नहीं है और टरबाईंस से निकलने के बाद जल को वापस नदी(outlet) में मिला दिया गया है.

 

अलास्का के तज़िमिनिया जलविद्युत परियोजना(फोटो साभार: डॉ. भरत झुनझुनवाला)

 

इसी प्रकार से श्रीनगर परियोजना के वर्तमान बाँध को हटाकर नरकोटा से नहर बनाकर बिजली बनानी चाइये जिससे कि स्थानीय लोगों को सुकून मिले और बिजली उत्पादन भी हो. श्रीनगर डैम बनने से पहले इस विकल्प को इस प्रकार बताया गया था :

चित्र में हम देख सकते हैं कि अलकनंदा नदी में रुद्रप्रयाग से ठोकर बनाकर नहर द्वारा नदी के पानी का एक हिस्सा निकला जा सकता है. नहर द्वारा वह पानी टरबाईंस तक पहुँचाया जा सकता है और नदी का दूसरा हिस्सा अविरल प्रवाहित होता रहेगा जिससे कि नदी में जलाशय नही बनेगा और जलस्तर नहीं बढ़ेगा जिससे कि स्थानीय लोगों को भी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा और लाखों लोगों की आस्था, माँ धारीदेवी का मंदिर भी अपने मूल स्थान पर वापस स्थापित किया जा सकेगा.

यह विकल्प डॉ भरत झुनझुनवाला (फॉर्मर प्रोफेसर, IIM बेंगलुरु) द्वारा कंस्ट्रक्शन कंपनी AHPCL के CEO श्री प्रसन्ना रेड्डी को 2010 में नगरपालिका की एक बैठक में दिया गया था. उस वक्त डैम के निर्माणकार्य की शुरुआत भी नहीं हुई थी. दुर्भाग्य से कंपनी ने इस विकल्प की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया था. लेकिन आज की समस्याओं को देखकर इस अलकनंदा परियोजना को नए स्वरुप में ढालना आवश्यक है जिसका की खर्चा सरकार और कंपनी को उठाना चाइये.

सत्ता में आने के बाद भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था कि “अब हमें गंगा से कुछ लेना नहीं है बल्कि सिर्फ देना है”. प्रधानमंत्री जी से हम आग्रह करते हैं कि अलकनंदा जलविद्युत परियोजना को हटा कर नहर बनाने का निर्णय दिया जाय ताकि गंगा नदी और धारी देवी मंदिर का अस्तित्व बचाया जा सके.

 

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