जलविद्युत परियोजनाओं को हटाये जाने की प्रक्रिया को demolishing of dams कहा जाता है. परियोजनाओं को हटाये जाने का कारण यह है कि नदियों को उनके मूल प्रवाह में बहने दिया जाय और जलीय जीवों की दिनचर्या बनी रहे. लम्बे समय से बने बांधों की वजह से कई जलीय प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं. जिसकी वजह से जैवमंडल में बहुत सारे नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं (रिपोर्ट यहाँ मौजूद है). जैवमंडल में सभी जीव एक चक्रीय प्रक्रिया के अनुसार बंधे होते हैं. लेकिन नदी पर बने बाँध, इस प्रक्रिया के एक अंश (जलीय जीव) को नुक्सान पहुंचा रहे हैं. जिसकी वजह से पूरे जैवमंडल में अस्थिरता आती है. जो कि मौसम परिवर्तन का मुख्य कारण है. जलीय जीवन और पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने वाली इस विकराल समस्या से मुक्ति पाने के लिए विश्व भर के देशों नें जलविद्युत परियोजनाओं को हटाना शुरू कर दिया है.
इंटरनेशनल रिवर्स की रिपोर्ट के अनुसार “विश्व में बाधों को हटाया जा रहा है“(हटाये गये बांधों की विस्तृत तालिका हम यहाँ पर देख सकते हैं).. 1984 में कैलिफोर्निया के ट्रिनिटी नदी बेसिन में मछली और वन्यजीव प्रबंधन अधिनियम पर हस्ताक्षर किए गए (यहां देखें)यहां देखें). ट्रिनिटी नदी से मछली और वन्य जीवों की आबादी को पुनर्स्थापित करने के लिए इंटीरियर सचिव को अधिकृत किया गया की ट्रिनिटी और लेविस्टोन जैसे बांधों को हटाया जाय.
इसी प्रकार 1994 में थाईलैंड में बिजली उत्पन्न करने के लिए पाक मुन बांध का निर्माण किया गया था, जिसके कारण धरती के ऊपर मछली की आबादी में भारी कमी और जैविक समस्याओं से 20,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं. इस समस्या को देखते हुए थाईलैंड सरकार नें 2001 में बांध के कपाट खोलने पर सहमति हुई. (इस मुद्दे पर इंटरनेशनल रिवर्स की रिपोर्ट यहाँ मौजूद है)
अंतरराष्ट्रीय रिवर्स की रिपोर्ट के अनुसार “पाक मुन बांध को निष्क्रिय कर दिया गया और नदी बहाल हो गई। 23 मार्च 1999 को, 5,000 से ज्यादा गांववालों ने पाक मुन बांध स्थल पर कब्जा कर लिया और प्रतिबंध लगा दिया.”
अमेरिकन रिवर्स की रिपोर्ट में (पृष्ठ 20 – 29) हम यह देख सकते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने पर्यावरण संबंधी मुद्दों, आर्थिक मुद्दों, सुरक्षा मुद्दों, मनोरंजन के मुद्दों, विफलता के मुद्दों, अनधिकृत बांधों के मुद्दों के लिए 467 बांधों को हटा दिया है और अधिकांश वे बांध हटाए गए, जो निर्माणाधीन थे.
अब पूरे पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए बांधों के खिलाफ एक आंदोलन शुरू हो चूका है. जगदगुरु शंकराचार्य के अनुसार “गंगा के पास एक बहुत ही भावुक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक घाटी है” (शंकराचार्य जी का लेख यहां उपलब्ध है). यह बड़ी अजीब बात है कि दुनिया केवल मछलियों और जलीय जीवों की सुरक्षा के लिए बांधों को हटा रही है लेकिन हम अधिक से अधिक बांधों को बनाकर गंगा की संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं.