वाराणसी में जलमार्ग निर्माण से नुक्सान

Post By: Shripad Dharmadhikari & Jinda Sandbhor
राष्ट्रीय जलमार्ग को दर्शाता नक्शा (वाराणसी) फोटो साभार: जिंदा सिंधभोर
उत्तर प्रदेश में वाराणसी जलमार्ग का केंद्र बनने जा रहा है क्योंकि यहाँ चार नदियाँ आपस फैली हुई है. वाराणसी में चार जलमार्गो को भरत सरकार ने राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है, जो की नुक्सानदेह हैं.


इसमें रामनगर में मल्टीमोडल हब और नदी-रोड-रेल टर्मिनल भी शामिल है.वाराणसी में निर्माणाधीन टर्मिनल का चित्र नीचे दिया गया है

राष्ट्रीय जलमार्ग 1:

वाराणसी में रास्ट्रीय जलमार्ग का निर्माणाधीन रामनगर टर्मिनल फोटो साभार: नंदनी ओझा
राष्ट्रीय जलमार्ग -1 भारत का सबसे लंबा जलमार्ग है जो हल्दिया से इलाहाबाद तक है. टर्मिनल का निर्माण पर्यावरण मंत्रालय से बिना पर्यावरण मंजूरी के चल रहा है . हालांकि हमारे आंकलन के अनुसार टर्मिनल की क्षमता दुसरे चरण में 18 मिलियन टन प्रतिवर्ष है जिसके लिए पर्यावरण मंजूरी आवश्यक होती है.वाराणसी से साहबगंज तक रास्ट्रीय जलमार्ग -1 को संचालित करने के लिए गंगा में ड्रेजिंग करके 2.2 मीटर गहरा और 45 मीटर चौड़ा नेगिवेशन चैनल बनाया जायेगा. इसका जलीय जंतु, मछुआरों और प्रदुषण पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा जिसका अध्ययन नहीं किया गया है. वाराणसी में मुख्य जलमार्ग NW-1 मुख्य गंगा नदी पर बनेगा. साथ साथ दो छोटे जलमार्ग असी और वरुण नदी पर बनेंगे. नीचे हम इन दोनों जलमार्गों का विवेचन कर रहे हैं.

वाराणसी घाट के पास मछली पकड़ते मछुआरे फोटो साभार जिंदा सिंधभोर
राष्ट्रीय जलमार्ग 12: (असी)
रास्ट्रीय जलमार्ग -12 शहर के गोल्फ क्लब क्षेत्र के निकट शुरू होता है और असीघाट के पास गंगा पर समाप्त होता है. नदी को अपने दोनों किनारों पर अतिक्रमण का सामना करना पड़ रहा है. कुछ स्थानों पर नदी पतली नहर और सीमेंट के पाइपों के माध्यम से बहती है. हमारे आंकलन के अनुसार यह जलमार्ग तकनीकी रूप से व्यावहारिक नहीं होगा.

 

वाराणसी शहर के पास प्रदूषित वरुण नदी, कचरा डंप नदी के तट पर देखा जा सकता है, रास्ट्रीय जलमार्ग 108 इसी नदी से जाता है (फोटो साभार: जिंदा सिंधभोर)

 

राष्ट्रीय जलमार्ग 108: (वरुणा)
राष्ट्रीय जलमार्ग 108 की शुरूआत वरुण नदी पर कुरु के निकट सड़क पुल पर होती है.

रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत नदी के कुछ हिस्सों को संकरी नहर में बहने पर बाध्य किया जा रहा है. नदी के इस चैनल के बगल की भूमि का उपयोग अन्य कमेर्सियल गतिविधियों के लिए किया जायेगा. यह भूमि बाढ़ के मैदान का भी हिस्सा है . इस से बाढ़ के समय ज्यादा नुक्सान होगा. इस प्रकार जलमार्ग के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की नहीं की गयी है.

असी और वरुण नदी वाराणसी की विरासत है. उन्हें स्वय के लिए पुनर्जीवित किया जाना चाहिए जलमार्ग के लिए नहीं. इन नदियों को पुन: उनकी अपनी भूमि वापस देने की जरूरत है ताकि उन्हें जलमार्ग की जगह अपना स्वतंत्र प्रवाह मिल सके.

हम भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध करते है कि वे वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत को बनाये रखने के लिए असी और वरुणा नदी को पुनर्जीवित करे न की जलमार्ग के लिए.

 

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