लेखक – मयूख डे
हूगली नदी में यातायात देखा जा सकता है (फोटो साभार: मयुख डे)
गंगा के मैदानी क्षेत्र में एक अनोखा प्राणी डॉलफिन बसा हुआ है. डॉल्फिन देख नहीं सकता है. यह पशु ध्वनियों पर आधारित रहता है और आवाज़ सुन कर अपने शिकार को पकड़ता है. कलकत्ता में डॉलफिन देखने के बाद मैं आश्चर्यचकित था किशहर के भीतर मैंने कभी नदी में रहने वाले जानवरों के इस अवशेष की कल्पना नहीं की थी. सीवेज, प्लास्टिक, तेल और रसायनों के वाहक होने के अलावा, हूगली नदी, पूरे देश में सबसे व्यस्त जलमार्गों में से एक है. एक मोटरबोट, जिसकी क्षमता 100 लोगों की होती है, प्रत्येक 10 मिनट के अंतराल में एक घाट से दूसरे घाट के बीच में चक्कर लगातीरहती है. इसके अलावा, भरी कंटेनर और कोयला ले जाने वाले जहाजों द्वारा धुंआ भी पूरी नदी में फ़ैल जाता है.
हुगली नदी में भारी वाहक ट्रैफिक (फोटो साभार: मयुख डे)
हूगली नदी में भरी वाहक ट्रेफिक होने की वजह से पानी के नीचे बहुत ज्यादा शोर होता है. चूँकि डॉलफिन ध्वनि पर निर्भर हैं, इसलिए हूगली नदी में शोर उन्हें निश्चित रूप से प्रभावित करता है. कलकत्ता में हूगली नदी के विपरीत, बिहार में गंगा नदी है, जहाँ झींगा मछलियों और डॉलफिन की आवाजें, पूरे पानी को स्तंभ से भर देती हैं. वहीँ एक मोटरबोट इन जानवरों की आवाज सुनने और अपनी जीविका चलाने की क्षमता को क्षीर्ण कर देती है. बगेर सही अध्ययन के यह पता नहीं चल पायेगा कि, हमारी नदियों में आवाज का प्रदूषण गंगा नदी में डॉलफिन को कैसे प्रभावित कर रहा है. उदाहरण के लिए चीन की यांगत्जी नदी को लिया जा सकता है, जो कि एक बार डॉलफिन का घर था. नदी में बढ़ता शोर, डॉलफिन के विलुप्त होने के कारणों में से एक माना जा सकता है. कहीं ऐसा न हो जाये कि जिस प्रकार चीनी नदी से डॉलफिन विलुप्त हो गयी हैं उसी प्रकार हमारी गंगा से भी डॉलफिन विलुप्त न हो जाएँ.
गंगा के बाढ़ के मैदानों के एक अप्रयुक्त अनुभाग की एक हवाई छवि (फोटो साभार: मयूख डे)
वास्तविकता यह है कि डॉलफिन गंगा नदी में बने अंतर्देशीय जलमार्गों के अत्याचारों को झेल रही हैं. और यह अंतर्देशीय जलमार्ग डॉलफिन के विनाश का संकेत है. सही है कि कलकत्ता में आज शोर तथा मोबिल ऑइल के बीच डॉलफिन पायी जा रही हैं. परन्तु भागलपुर की तुलना में यह बहुत कमजोर हैं. इस प्रकार के जलमार्गों के निरंतर निर्माण से इस सुन्दर जीव का मिलना, और भी मुश्किल होता जा रहा है. मयूख डे द्वारा लिखित सम्पूर्ण कहानी यहाँ पढ़ सखते हैं…
मयुख डे: मयुख डे, बैंगलोर के नेशनल सेंटर ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज में वर्तमान एमएससी वाइल्डलाइफ बायोलॉजी और कंजर्वेशन कोहोर्ट कार्यरत है. पहले मगरमच्छ, मछलियों और गंगा नदी डॉल्फिन से जुड़ी परियोजनाओं पर काम करने के बाद, उनका संबद्ध पिछले तीन सालों से ताजे पानी की प्रणालियों से रहा है। यहां, वह डॉल्फिन नदी के लिए अपनी चिंताओं के बारे में लिखते हैं जो भारत के शोरगुल वाले यातायात जलमार्ग में रहता है.
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