मनमोहन बनाम मोदी?

इस पोस्ट में हम पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह एवं वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के गंगा के प्रति कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे.

श्री मनमोहन सिंह कहा करते थे कि गंगा मेरी माँ है. प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने के शीघ्र बाद श्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा था कि गंगा ने मुझे बुलाया है, अब हमें गंगा से कुछ भी लेना नहीं, बस देना ही है. आइये अब देखें इन्होंने अपने अपने कार्यकाल में गंगा के लिए क्या किया है.

टिहरी बांध:

टिहरी बाँध का निर्माण नरसिम्हाराव की कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू हुआ था. इसके बाद वाजपेयी जी की सरकार 1999 में सत्ता में आई और उस समय प्रश्न उठा कि क्या गंगा पर बाँध बनाने से गंगा की आध्यात्मिक शक्ति पर दुष्प्रभाव पड़ता है?  इस विषय पर तथा टिहरी के भूकंप सम्बन्धी सम्भावनाओं  को देखने के लिए श्री मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में वाजपेयी जी ने एक कमिटी बनाई थी. इस कमिटी में चार सदस्य विश्व हिन्दू परिषद् के लिए गए थे. (1.रिपोर्ट नीचे देखें). इस कमिटी ने भूगर्भीय दृष्टिकोण से टिहरी को हरी झंडी दे दी थी और गंगा की आध्यात्मिक शक्ति के विषय में कमिटी नें कहा कि दस सेंटीमीटर (लगभग 4 इंच) की एक पाइप बाँध में डाल दिया जायेगा जो गंगा की अविरलता को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त होगी.

चार इंच के पाइप से झील में सड़ने वाले पानी निकलने को अविरलता मान लिया गया. यहाँ देखने की बात यह है कि अविरलता की जरुरत मुख्यतः इसलिए होती है कि रुका हुआ पानी सड़ने लगता है और उसकी आध्यात्मिक शक्ति ख़त्म हो जाती है. बाँध के अवरोध से मछलियां भी आवाजाही नहीं कर पाती और कमजोर हो जाती हैं. टिहरी बाँध के ऊपर अब महसीर मछली नहीं पाई जाती है.जिसकी वजह से पानी की गुणवत्ता में गिरावट आती है. चार इंच के पाइप से न तो पानी की सड़न कम होती है और न ही मछलियों का आवागमन होता है.

गंगा के लिए समर्पित सानंद स्वामी जी (डॉ जी डी अग्रवाल, पूर्व प्रोफेसर, आई आई टी कानपुर) का कहना है कि मुरली मनोहर जोशी की इस रिपोर्ट के बाद ही टिहरी के ऊपर लोहारी नागपाला, भैरव घाटी और पाला मनेरी के बांधों को भी शुरू करने का क्रम हुआ. उनका मानना है कि भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद् के सदस्यों ने जब मान लिया कि बाँध बनाने से गंगा की आध्यात्मिक शक्ति का ह्रास नहीं होगा तब गंगा पर दूसरे बांधों को बनाने का रास्ता खुल गया. यद्यपि जोशी रिपोर्ट मूलतः टिहरी बाँध के विषय में थी परन्तु इसका दीर्घकालिक प्रभाव हुआ और गंगा के ऊपर अन्य परियोजनाएं भी शुरू हो गयी.

NGRBA:

श्री सानंद स्वामी जी द्वारा गंगा के लिए किये गए अनशन के फलस्वरूप श्री मनमोहन सिंह ने 2009 में “नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी” का गठन किया. इस अथॉरिटी में दस विशेषज्ञ सदस्यों को पूर्ण सदस्य बनाया गया था. इन सदस्यों में श्री राशिद सिद्दकी, सुनीता नारायण, राजेंद्र सिंह, बी डी त्रिपाठी, आर के सिन्हा जैसे गंगा के ऊपर श्रद्धा से काम करने वाले व्यक्ति समिलित थे. वर्ष 2016 में श्री नरेंद्र मोदी की सरकार नें इस प्रारूप को निरस्त करके नया प्रारूप जारी किया जिसमे ऑथोरिटी के सदस्य केवल मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री रह गए और व्यवस्था की गई कि एक्सपर्ट्स से चर्चा की जा सकती है. यानि गंगा के बारे में जानकार लोगों का पद सदस्य से घटाकर केवल मांगे जाने पर सुझाव देने का रह गया.  (2.रिपोर्ट नीचे देखें)

तीन परियोजनाएं:

सानंद स्वामी जी के ही अनशन के फलस्वरूप श्री मनमोहन सिंह ने गंगा की मुख्य धारा भागीरथी पर निर्माणाधीन तीन जल विद्युत परियोजना पाला मनेरी, भैरव घाटी और लोहारी नागपाला को निरस्त कर दिया (3.रिपोर्ट नीचे देखें). इसके सामने मोदी जी की सरकार के प्रमुख मंत्री श्री नितिन गडकरी नें कहा कि उनका प्रयास रहेगा कि बंद हुई परियोजनाओं को पुनः शुरू किया जाएगा.

हाल ही में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री ने बयान दिया है कि गंगा पर अब कोई नयी परियोजनाएं शुरू नहीं की जाएँगी. साथ साथ उन्होंने यह भी कहा है कि रुकी हुई परियोजनाओं का काम जल्द शुरू किया जाएगा. अतः यह स्पष्ट नहीं है कि श्री मनमोहन सिंह द्वारा निरस्त की गई उपरोक्त तीनो परियोजनाओं पुनः शुरू किया जायेगा या नहीं.

आईआईटी:

मनमोहन जी की सरकार नें सात IIT के कंसोर्टियम को गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान बनाने का कार्य दिया था. IITs नें यह प्लान बनाकर जनवरी 2015 में केंद्र सरकार को सौंप दिया. इस प्लान में कहा गया था कि गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए उसकी लोंगीटयुडनल कनेक्टिविटी यानि उसके प्रवाह की प्राकृतिक निरंतरता बनाये रखना जरुरी है

(dams and barrages must permit longitudinal connectivity and allow E-Flows (Environmental Flows) in rivers. Towards this end, a method for ensuring longitudinal river connectivity with E-Flows passage through dams/barrages is suggested. A comprehensive set of criteria has also been proposed to define environmental clearance requirements for dams/ barrages based on 4 categories of their environmental impacts. – Ganga River Basin Management Plan – 2015). (4.रिपोर्ट नीचे देखें)

IITs नें कहा कि ऐसे किसी भी प्रोजेक्ट को स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए जिससे कि गंगा की लोंगीटयुडनल कनेक्टिविटी या अविरल धारा बाधित होती है. लेकिन आज सरकार इस रिपोर्ट का कोई जिक्र नहीं करती है और न ही इसपर कोई  निर्णय लिया है. इस संबंद में CAG ने कहा है:

“National Mission for clean ganga could not finalise the long-term action plans even after more than six and half years of signing of agreement with the consortium of Indian Institute of Technology. As a result, National Mission of Clean Ganga does not have a river basin management plan even after a lapse of more than eight years of National Ganga River Basin Authority notification” –  CAG report 2016). (रिपोर्ट नीचे देखें)

पर्यावरणीय प्रवाह:

श्री मनमोहन सिंह सरकार नें गंगा के ऊपर निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं पर विचार करने के लिए श्री बी के चतुर्वेदी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी. इस कमेटी नें निर्णय लिया कि जलविद्युत परियोजनाओं को 20 से  30 प्रतिशत पानी, पर्यावरणीय प्रवाह के रूप में निरंतर छोड़ना होगा. (रिपोर्ट नीचे देखें). नेशनल ग्रीन ट्रेबुनल में दायर की गयी एक याचिका में केरल सरकार ने कहा है कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इन संस्तुति के अनुसार पर्यावरणीय प्रवाह छोड़ने की शर्त लगयी जा रही है:

“Ministry of Environmental, forest and Climate Change (MoEF&CC) is suggesting “Minimum environmental flow release would be 20% of average of four months of lean period and 20% to 30% of flows during non-lean and non-monsoon period corresponding to 90% dependable year. The cumulative environmental flow releases including spillage during the monsoon period should be about 30% of the cumulative inflows during the monsoon period coressponding to 90% dependable year” while according environmental clearance from hydro electic projects.” (रिपोर्ट नीचे देखें)

इसके सामने चार साल बीत जाने के बाद भी वर्तमान में चल रहे जल विद्युत परियोजना जैसे टिहरी, विष्णुप्रयाग, मनेरी भाली इत्यादि से 20 से 30 प्रतिशत पर्यावरणीय प्रवाह छोड़ने के प्रति मोदी सरकार नें कोई कदम नहीं उठाया है.

अंतर्देशीय जलमार्ग:

गंगा के ऊपर ढुलाई करने की योजना बहुत पुरानी है. लेकिन वर्ष 2014 तक श्री मनमोहन सिंह ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं लिया था. श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार के सत्तारूढ़ होने के तुरंत बाद सितंबर 2014 में ही नेशनल वाटरवे – 1 की डीपीआर बनाने के लिए ठेकों का निमंत्रण जारी कर दिया गया, विश्व बैंक से लोन लिया और आज इस पर तेज़ी से कार्य हो रहा है.

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट:

जहाँ तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का विषय है, हमारी जानकारी में श्री मनमोहन सिंह के समय में इनकी बुरी स्थिति थी लेकिन वर्तमान में इनकी दशा में कुछ हद तक सुधार हुआ है यानि केंद्र सरकार द्वारा अच्छी रकम उपलब्ध कराई गयी थी लेकिन जमीनी स्तर पहले इनमे कोई काम नहीं हुआ था. बनारस के लोगों का कहना है कि बीते कुछ समय में मोदी जी की सरकार में गंगा का पानी कुछ साफ़ हुआ है, और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से गंगा में कूड़ा कचरा रोकने का काम पहले कुछ बेहतर हुआ है. IIT कंसोर्टियम नें सुझाव दिया था कि गंगा में जाने वाले गंदे पानी को साफ़ करके सिंचाई के उपयोग में लाया जाना चाहिए. यह रिपोर्ट मोदी जी के समय दी गयी है और इसमें सुधार हुआ है. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार:

The estimated sewage generation from Class I cities and Class II towns (as per 2001 census) is 29129 MLD, which is expected to be 33212 MLD at present assuming 30% decadal growth in urban population. Against this, there exist STPs having 6190 MLD capacity while another 1743 MLD capacity is being added. Thus, the existing treatment capacity is just 18.6 % of present sewage generation and another 5.2 % capacity is being added. However, the actual capacity utilization of STPs is only 72.2% and as such only 13.5 % of the sewage is treated. This clearly indicates dismal position of sewage treatment, which is the main cause of pollution of rivers and lakes. To improve the water quality of rivers and lakes, there is an urgent need to increase sewage treatment capacity and its optimum utilization. (यहाँ देखें)

अब पाठक स्वयं निर्णय करें कि वास्तव में कौन माँ गंगा के प्रति  कारगर है?

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सम्बंधित रिपोर्ट: