भ्रष्टाचार के लिए 80 हज़ार करोड़ लेकिन गंगा प्यासी क्यों?

भ्रष्ट सरकारी बैंकों के भ्रष्ट कर्मियों के भ्रष्टाचार को जीवित रखने के लिए एनडीए सरकार नें हाल में 80 हज़ार करोड़ रुपये की पूँजी सरकारी बैंकों को उपलब्ध करायी है. लेकिन गंगा की अविरलता को स्थापित करने के लिए सरकार पूर्णतया उदासीन है वह 8 हजार करोड़ रुपये भी गंगा के लिए खर्च करने को उत्सुक नहीं है.

एनडीए सरकार ने अपने 2014 के चुनावी घोषणापत्र में सरकार नें कहा था कि “गंगा में निर्मलता व उसके प्रवाह में निरंतरता” सुनिश्चित करना सरकार का उद्देश्य है. (सरकार का चुनावी घोषणापत्र यहाँ देखें – पेज 6).

manmohan singh 2

लगभग सात साल पहले श्री सानन्दं स्वामी (डॉ. जी. डी. अग्रवाल, पूर्व प्रोफेसर, IIT कानपुर) के आमरण अनशन करने पर माननीय प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह नें गंगा की सहयोगी धारा भागीरथी पर तीन निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाएं – भैरोंघाटी, मनेरी भाली – 1 और लोहारी नागपाला का निर्माण पूर्णतया स्थगित कर दिया. भविष्य में इस बांधों का पुनर्निर्माण न करने का प्रयास किया. लोहारी नागपाला पर सरकारी उपक्रम एन.टी.पी.सी. द्वारा लगभग छह सौ करोड़ खर्च किया जा चुका था. कथित रूप से सेक्युलरवादी कांग्रेस पार्टी नें गंगा को अविरल बनाने के लिए तीनो परियोजनाओं को बंद करके 600 करोड़ रुपये का घाटा बर्दास्त किया था जो देशहित में एक सराहनीय कदम था.

गंगा की दूसरी मुख्या धारा अलकनंदा पर वर्तमान में श्रीनगर एवं विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजनाएं नदी की अविरलता को बाधित कर रही हैं. वर्ष 2014 में  एनडीए सरकार सत्ता में आई थी किन्तु कथित रूप गंगा प्रेमी सरकार नें गंगा की अविरलता कायम करने के स्थान पर उसी वर्ष तीसरी परियोजना विष्णुगाड-पीपलकोटी का निर्माण भी शुरू करा दिया जो घोषणापत्र के विपरीत था.

प्रश्न है कि क्या एनडीए सरकार को उपरोक्त तीनो परियोजनाओं को बंद करके अलकनंदा की अविरलता को स्थापित नहीं करना चाहिए?

narendra modi 4हमें मानना होगा कि इन परियोजनाओं को सभी पर्यावरणीय स्वीकृतियां मिल चुकी हैं और कानूनी दृष्टि से शायद इन्होने कोई गलती भी नहीं की होगी. यही स्थिति लोहारी नागपाला की भी थी, परन्तु मनमोहन सिंह नें इसे बंद करने का साहसिक कदम उठाया था. इसी प्रकार अगर नरेन्द्र मोदी जी गंगा की अविरलता स्थापित करना चाहते हैं, तो उन्हें इन तीनो परियोजनाओं का राष्ट्रीकरण कर देना चाहिए. कन्स्ट्रक्शन कंपनियों को उचित मुआवजा दे कर इन परियोजनाओं को खरीद लेना चाहिए और इन्हें नेस्तेनाबुत कर देना चाहिए. हमारे अनुमान से संभवतया श्रीनगर परियोजना की लागत लगभग 4 हज़ार करोड़ रुपये, पीपलकोटी परियोजना की अबतक की लागत लगभग 2 हज़ार करोड़ रुपये और विष्णुप्रयाग में लगभग 500 सौ करोड़ रुपये की लागतआई है. अगर अन्य खर्च मिलाकर 1500 करोड़ रुपये मान लिया जाय तो लगभग 8 हज़ार करोड़ रुपये केंद्र सरकार द्वारा खर्च कर दिया जाय तो इन परियोजनाओं को अधिग्रहित करके इनको हटाया जा सकता है. फलस्वरूप गंगा की अविरलता स्थापित हो जायेगी.

विषय यह है कि एनडीए सरकार ने अपने घोषणापत्र के विपरीत कार्य किया है कि मनमोहन सिंह जी द्वारा बंद की गयी परियोजनाओं को वे पुनः शुरू करने का प्रयास करायेंगे. अर्थात एनडीए सरकार गंगा की अविरलता को बनाये रखना तो दूर,वर्तमान अविरलता को भी खंडित करने को प्रयासरत है. हमारी श्री नरेंद्र मोदी जी से करबद्ध प्रार्थना है कि कृपया गंगा की अविरलता के लिए 8 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की कृपा करें और माँ गंगा का आशीर्वाद प्राप्त करें.

यह पोस्ट डॉ भरत झुनझुनवाला, देबादित्यो सिन्हा, स्वामी शांतिधर्मानंद और विमल भाई द्वारा समर्थित है.

 

 

इस विषय पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को लिखें