दावेस में हुए वर्ल्ड इकोनोमिक फ़ोरम द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गयी है, जिसमें विश्व के 180 देशों के पर्यावरण की स्थिति का मूल्यांकन किया गया है. रिपोर्ट (वर्ल्ड इकोनोमिक फ़ोरम की रिपोर्ट यहाँ देखें) में बताया गया कि भारत 180 देशों की सूची में 177वें पायदान पर है. हम नेपाल और बांग्लादेश के साथ सबसे निचले पांच देशों में शोभा पा रहे हैं.
रिपोर्ट का विश्लेषण
रिपोर्ट के अनुसार भारत की न्यून श्रेणी का प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है. वायु प्रदूषण के जो प्रमुख कारण रिपोर्ट में बताए गये हैं, उनमे पराली का जलाया जाना और थर्मल पॉवर प्लांटों के लिए कोयले का जलाया जाना विशेषकर बताया गया है. पराली के जलाये जाने के बारे में आप विस्तृत रूप से यहाँ पढ़ सकते हैं. वर्तमान विषय बिजली उत्पादन में कोयले के जलाने से हो रहे कार्बन उत्सर्जन का है. अमूमन यह माना जाता है कि कोयले से बनी थर्मल पॉवर ज्यादा प्रदूषण फैलाती है जबकि जलविद्युत या हाइड्रोपावर तुलना में कम प्रदूषण फैलाती है. लेकिन वस्तुस्थिति इसके विपरीत है. सच यह है की बिजली के उत्पादन में जितना कार्बन उत्सर्जन कोयले से होता है, लगभग उतना ही या संभवतः उससे ज्यादा उत्सर्जन बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं से होता है.
रेफेरेंस – वाशिंगटन पोस्ट (यहाँ देखें)
बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में एक बाँध बनाया जाता है जिसके पीछे एक बड़ा तालाब बन जाता है जैसा कि सरदार सरोवर, भाखड़ा नांगल या टिहरी डैम में बना है. ऊपर से नदियाँ पानी को इस तालाब में लेकर आती हैं और अपने साथ मरे हुए पशु, पेड़ पौधे इत्यादि ऑर्गेनिक पदार्थ भी लेकर आती है. ये जैविक पदार्थ तालाब में नीचे बैठ जाते हैं और वहां सड़ने लगते हैं. शुरू में यह पानी में उपलब्ध आसपास की ऑक्सीजन को सोखते हैं, और सड़ने से उत्पन्न हुआ कार्बन इस ऑक्सीजन के साथ मिलकर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बनाता है और कार्बन डाइऑक्साइड का तालाब से उत्सर्जन होता है. कुछ समय बाद तालाब के नीचे के हिस्से के पानी में ऑक्सीजन की मात्र शून्यप्राय हो जाती है लेकिन आर्गेनिक पदार्थ का सड़ना जारी रहता है. इस सडन से आर्गेनिक पदार्थ में मौजूद कार्बन को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है. वह कार्बन तालाब में मौजूद हाइड्रोजन के साथ मिल कर मीथेन गैस (CH4) बनाती है जैसा नीचे चित्र में दिखाया गया है. यह मीथेन गैस, पर्यावरण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 25 गुना अधिक हानिप्रद है:
In environmental terms, CH4 is a greenhouse gas. It has a Global Warming Potential (GWP) of 25, i.e. 25 times the GWP of CO2, the reference greenhouse gas (the GWP of CO2 = 1) (GWP values from the Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC)’s fourth assessment report published in 2007). Among the greenhouse gases covered by the Kyoto Protocol, CH4 is the second largest contributor to global warming after carbon dioxide (CO2). (रिपोर्ट यहाँ देखें)
ऐसा प्रमाण मिलता है की बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के तालाब से निकलने वाली यह कार्बन डाइऑक्साइड एवं मीथेन गैस वास्तव में कोयले से बनी बिजली से ज्यादा नुकसानदेय है. इंटरनेशनल रिवेर्स द्वारा किये गये एक अध्ययन मे पाया गया है कि ब्राज़ील के गरम देश में बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं से एक यूनिट बिजली बनाने के लिए 2154 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड हवा में उत्सर्जित होता हैं. जिसमे लगभग 900 ग्राम कार्बन होता है. कोयले से बिजली बनाने में भी लगभग 800 ग्राम कार्बन प्रति यूनिट बिजली उत्सर्जित होता है (रिपोर्ट यहाँ देखें).अतः गरम क्षेत्रों में बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं से उत्सर्जित कार्बन और कोयले से उत्सर्जित कार्बन लगभग बराबर होता है. इसलिए वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की रिपोर्ट में केवल कोयले का उल्लेख करना और बड़ी जल विद्युत् परियोजनाओं का उल्लेख न करना गलत दिखता है. यहाँ यह स्पष्ट करना जरुरी होगा कि इंटरनेशनल रिवेर्स की उसी रिपोर्ट में कनाडा जैसे ठन्डे देश में बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन मात्र 36 ग्राम प्रति यूनिट बताया गया है. अतः ऊपर बताई गयी जलविद्युत और थर्मल पॉवर की समानता मुख्यतः गरम क्षेत्रों के लिए लागू होती है जैसा कि सरदार सरोवर बाँध के लिए माना जा सकता है.
हिमालयी क्षेत्रों में परियोजनाए
भारत में अधिकतर बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं हिमालयी क्षेत्रो में बन रही है. नेशनल इन्वोर्न्मेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट नागपुर(NEERI) द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि टिहरी झील से 2.5 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड प्रति वर्ग मीटर प्रतिदिन उत्सर्जित हो रहा है और 24 मिलीग्राम मीथेन प्रति वर्ग मीटर प्रतिदिन उत्सर्जित हो रहा है. गणना बताती है कि यह मात्रा लगभग 1200 टन कार्बन प्रतिदिन उत्सर्जित होती है [2.5 ग्राम * 450 वर्ग किलोमीटर मीटर क्षेत्र] .(NEERI की विस्तृत रिपोर्ट यहाँ देखें – पेज 190). अतः इस अध्ययन से स्पष्ट होता है कि हमारी जलविद्युत परियोजनाओं की स्थिति ब्राज़ील के समतुल्य है ना कि कनाडा के समतुल्य यद्यपि हमारी जलविद्युत परियोजनाएं हिमालय की गोद में स्थापित हो रही हैं, इसलिए वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की रिपोर्ट को पढ़ते समय हमें केवल थर्मल पॉवर प्लांटों से उतर्जित कार्बन की चिंता न करके साथ साथ जल विद्युत परियोजनाओं से उत्सर्जित उतनी ही कार्बन और मीथेन की भी चिंता करनी चाहिए.
वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के वायु सम्बन्धी प्रदूषण में बताया गया है कि भारत में हर वर्ष लगभग 16 लाख लोगों की मृत्यु वायु के प्रदूषण से हो रही है. यह मृत्यु मुख्यत: स्वाश सम्बन्धी रोगों से हो रही है.
इसके साथ जल विद्युत परियोजनाओं का जन स्वास्थ पर एक और विपरीत प्रभाव पड़ता है. इन परियोजनाओं के पीछे बनी बड़ी झील एवं नीचे सूखी या अर्धसूखी नदी के छोटे छोटे तालाबों में मछर पैदा होते हैं जो कि मलेरिया जैसे संक्रामक रोगों का फैलाव करते हैं. हमने उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग से सूचना के अधिकार में जानकारी पाई कि उत्तराखंड के सभी जिलों में मलेरिया का प्रभाव कम हो रहा है लेकिन टिहरी जिले में मलेरिया का प्रभाव बढ़ रहा है, जो कि प्रमाणित करता है कि टिहरी जैसे बड़े बांधों से जन स्वास्थ की भी हानि होती है.
प्रधानमंत्री जी ने वर्ल्ड इकनोमिक फोरम में बड़े जोश से विश्व के निवेशकों को भारत में निवेश करने को कहा. लेकिन वे इस बात को छुपा गए कि उसी वर्ल्ड इकनोमिक फोरम में भारत की पर्यावरण एवं वायु प्रदूषण की बद्दतर स्थिति की भी रिपोर्ट जारी की गयी है. और प्रदूषण की बद्दतर स्थिति में सुधर करने के लिए प्रधानमंत्री जी नें कोई कदम नहीं उठाये हैं. बल्कि वे लाखवार, व्यासी तथा पंचेश्वर जैसी बड़ी परियोजनाओं को बड़े जोर शोर से बढ़ावा दे रहे है.
हमारी जिम्मेदारी बनती है कि यदि हमें विश्व में अपनी सही पैठ बनानी है, तो आर्थिक विकास के साथ साथ प्रदूषण और जन स्वास्थ की भी रक्षा करनी ही पड़ेगी. इस दृष्टि से देश को जलविद्युत परियोजनाओं का मौलिक पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए जिनसे वायु प्रदूषण एवं जन स्वास्थ पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.