बरसात में बाढ़ का प्रकोप पर्यावरण का एक स्वाभाविक विषय है. लेकिन प्रतिवर्ष यह बाढ़ विकराल रूप धारण करती जा रही है. केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि भारत में हर पांच से छह वर्षों में बाढ़ द्वारा प्रभावित क्षेत्र का आंकलन 7 मिलियन हेक्टेयर से अधिक होता है. (रिपोर्ट नीचे देखें)
अध्ययन बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती का तापमान बढेगा जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा की मात्र में विशेष परिवर्तन नहीं होगा लेकिन जो वर्षा पहले मानसून के 90 दिनों में फैलकर बरसती थी अब वह कम दिनों में बहुत तेजी से बरसेगी. पानी के तेजी से बरसने के कारण उसे समुद्र तक पहुँचाने के लिए उसकी बहाव क्षमता में वृद्धि जरुरी है. यदि हमें अपने को बाढ़ से बचाना है तो हमें नदी के बहाव को बढाने के उचित प्रयास करने होंगे.
अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के प्रकाश त्रिपाठी की एक रिपोर्ट “फ्लड डिजास्टर इन इंडिया” में कहा गया है कि:
“The primary causes for floods are intense rainfall when the river is flowing full. Excessive rainfall in river catchments or concentration of runoff from the tributaries and river carrying flows in excess of their capacities.” (रिपोर्ट नीचे देखें)
इसी प्रकार सेण्टर फॉर बिल्ट एनवायरनमेंट के सुप्रियो नंदी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि:
“The government’s anti- flood measures have actually boomeranged. Dams and embankments have now become an important cause of floods”. The man-made barriers, he says, prevent drainage of excess water from floodplains into the main channels of rivers and streams. Embankments also tend to break when rivers rise suddenly, sending water gushing into the countryside. Sixteen major dams have burst in India; the worst disaster, in 1979, sent a wall of water through the town of Morvi in Gujarat state, killing 1,500 people. (रिपोर्ट नीचे देखें)
सुप्रियो नंदी की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि नदी के बहाव क्षेत्र में मानव निर्मित आवास, ऑफिस, बिल्डिंग इत्यादि बना दिए गए हैं जिससे बाढ़ के समय पर ज्यादा नुक्सान होता है:
“Few cities observe the principle that low lying areas are best preserved as wet lands and drainage channels act as flood cushions, unencroached upon by humans. In Calcutta (Kolkata) the wetlands issue has centred on the argument that if the city expands into these areas, it would wipe out a major source of fish and related jobs out also exacerbate waterloging, a problem which Mumbai and Chennai also face during the monsoon. Invariably, the poor suffer the most as they get pushed into the lowlands.”
बाढ़ से हर पांच से छह वर्षों में ज्यादा बहाव आता है जो कि भीषण बाढ़ का रूप लेता है. यह महाबाढ़ पिछले पांच वर्षों में नदी के रिवरबेड में जमा गाद को एक साथ समुद्र तक पहुंचा देती है जिससे नदी का रिवरबेड खाली हो जाता है जिससे नदी द्वारा बाढ़ के पानी को ले जाने की क्षमता पुनर्स्थापित हो जाती है.
बाढ़ के सार्थक पक्ष भी हैं. बाढ़ ज्यादा आएगी तो पानी ज्यादा फैलेगा. पानी के फैलाव से भूगर्भ जल का पुनःभरण ज्यादा होगा. पानी की उपलब्धता बढ़ेगी. लेकिन इस बाढ़ से जो जान-माल का नुक्सान होगा उसके लिए हमें गावों और शहरों को इस प्रकार बसाना होगा कि पानी का लेवल नीचे रहे और नुक्सान नहीं हो, जैसा स्टिल्ट के ऊपर मकान बनाये जाते हैं अथवा टीलों के ऊपर गावं बसाए जाते हैं.
नदियों पर अवरोध बनाकर जब हम बरसाती पानी को भी निकाल लेते हैं, जैसा कि हरिद्वार तथा नरोरा बैराज में, तब बाढ़ कम होती है. बाढ़ कम होने से जान माल का नुक्सान कम होता है. लेकिन इसके दो दुष्प्रभाव सामने आते हैं. पहला यह कि भूजल पुनर्भरण कम होता है. दूसरा यह कि पांच या छह वर्षों में आने वाली महाबाढ़ ख़त्म हो जाती है और नदी के रिवरबेड की गाद समुद्र तक नहीं पहुँच पाती है, रिवरबेड का जलस्तर बढ़ता जाता है और आने वाले समय में बाढ़ अधिक विकराल हो जाती है. अतः हमें समझना होगा कि हर वर्ष आने वाली बाढ़ को फ़ैलकर बिना अवरोध के बहने दिया जाय जिससे नदी की गाद सामान्य रूप से बह कर समुद्रों तक पहुँच सके न की हर वर्ष की गाद को नदी के रिवरबेड में ईकट्ठा होने दिया जाय जिससे वह एकत्र होकर एक भीषण आपदा का रूप ले.
बाढ़ से बचने के लिए नदी का जो पानी हमने रोका है वही हमारे लिए अभिशाप बन गया है. हमें बाढ़ को वरदान मानना चाहिए चूँकि वह जल का पुनर्भरण करती है. साथ साथ नदी को मुक्त बहने देना चाहिए जिससे बाढ़ का पानी भी निकलता रहे.
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