योजना आयोग ने अपनी एकीकृत ऊर्जा नीति रिपोर्ट में जल विद्युत् को ऊर्जा का सबसे बेहतर श्रोत माना है चूंकि यह कोयले से उत्पन्न ऊर्जा के मुकाबले गैस उत्सर्जन नहीं करता
. रिपोर्ट यहाँ है ( पेज 127 पैरा १३,पेज 143). लेकिन जलविद्युत जलाशयों में मिट्टी फंस जाती है जो तटीय कटाव को जन्म देती है.
योजना आयोग ने इस पहलु को ध्यान में नहीं रखा है. जलविद्युत के जलाशय नदियों को कैद कर लेते हैं जिस कारण नदियाँ मिट्टी को आगे नहीं ले जा पाती. यह मिट्टी नदी द्वारा कटान को रोकता है. जलविद्युत जलाशय इस मिट्टी को रोकते हैं और समुद्र हमारी जमीन को काटना शुरू कर देता है. गंगा के बड़े मैदान और बांग्लादेश की लगभग पूरी भूमि गंगा,मेघना और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाइ गई मिट्टी द्वारा बने गई है. दुनिया का सबसे बड़ा और 20 हजार साल पुराना सुंदरवन डेल्टा भी गंगा और इसकी सहायक नदियों द्वारा लाइ गई मिटटी से बना है. गंगा सागर स्थित सुंदरवन डेल्टा के जमीन में तेजी से कटाव हो रहा है और उसका भूभाग समुद्र में समाता जा रहा है. यहाँ गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित गंगा सागर हिंदुआ का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल भी है. सुंदरवन में सुन्दरी पेड़ (मैंग्रोव) पेड़ मिलते है जिनके नाम पर डेल्टा का नाम सुंदरवन पडा है. यह पेड़ मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रहते हैं. क्योंकि समुद्र से सटे होने के कारण यहाँ खारा और गंगा के मीठे पानी का मिलान होता है . लेकिन कुछ वर्षों से गंगा के पानी में कमी आने के कारण यहाँ खारे पानी की मात्रा बढ़ गई है. गंगा का पानी बांधो द्वारा निकाल लिया जाता है. सुंदरवन में मीठे पानी में कमी होने के कारण मैंग्रोव पेड़ों में कमी आ गई. मैंग्रोव पेड़ों में कमी के कारण भी जमीन में कटाव शुरू हो गया है और जमीन समुद्र में समाती जा रही है. पिचली 40वर्षों में सुंदरवन का 200 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पानी में समा चुका है.
ऑस्ट्रेलियन वैज्ञानिक Wasson ने अपनी रिपोर्ट में बताया की हिमालय से 794 मिलियन टन मिट्टी गंगा द्वारा प्रदान की जाती है और इसमें से 450 मिलियन टन सुंदरवन जैसे निचले डेल्टा में जमा होती है. Wasson की रिपोर्ट यहाँ है.
लेकिन टिहरी जैसे बांधो ने इस मिटटी को रोक दिया है और सुंदरवन को इस मिट्टी से वंचित कर दिया है. हम नीचे भागीरथ जो टिहरी से आ रही है और अलकनंदा जो बद्रीनाथ से आ रही है के संगम की तस्वीर दे रहे हैं जो श्रीनगर बाँध बनने से पहले (अप्रैल 2008) की है जिसमे आप भागीरथी को देख सकते है काफी हलके रंग की है क्योंकि इसमें टिहरी बाँध के कारण मिट्टी की मात्रा बहुत कम है.
देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा का संगम
गिरीश गोपीनाथ और अन्य समुद्री जियोलोजी और भूभौतिक विभाग, कोची विश्वविद्यालय विज्ञान और प्रोद्योगिकी ने पश्चिम बंगाल में गंगासागर द्वीप का अध्ययन किया . उन्होंने अनुमान लगाया की 1976-96 के बीस वर्ष की अवधि में, प्रति वर्ष 0.8 वर्ग किलोमीटर की दर से गंगासागर कम हुआ. हालांकि 1976-99 के तीन वर्षों में प्रति वर्ष 5.5 किलोमीटर की वृद्धि हुयी. इसके लिए बांधो द्वारा मिट्टी को रोकना जिम्मेदार है. आप यहाँ पूरी रिपोर्ट देख सकते हैं. (पेज 1पैरा 2)
सुंदरवन में कटाव
आंध्र विश्वविद्यालय विशाखापत्तनम, यामागुची विश्वविद्यालय, जापान; और शिमैन विश्वविद्यालय, जापान; द्वारा किये गए एक अध्ययन में , गोदावरी डेल्टा लाइन पर पिछले तीन दशकों में 1836 हेक्टेयर भूमि का शुद्ध घाटे का अनुमान लगाया है. उन्होंने कटाव के लिए इस मिट्टी की आपूर्ती में कमी को जिम्मेदार ठहराया था क्योंकि इस अवधि में कई बांधों के निर्माण की वजह से बालू को कम किया है.
हम श्री नरेन्द्र मोदी जी से टिहरी बाँध से होने वाले तमाम तटीय कटाव प्रभाव का आंकलन करने के लिए पावर, जल संसाधन और पर्यावरण मंत्रालय को आदेश देने के लिए निवेदन करते हैं और इस अध्ययन के पूरा होने तक पंचेश्वर और रेणुका बाँध को रोकें.
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