कुंभ मेला| प्रयागराज| गंगा| यमुना| शिप्रा| गोदावरी
प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है. कुंभ मेला हर तीन वर्ष में अलग-अलग नदियों के तट पर आयोजित किया जाता है – प्रयागराज में गंगा और यमुना के संगम पर, उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर, नासिक में गोदावरी नदी के तट पर और हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर. इसके अलावा, कुंभ एक विशेष ग्रह नक्षत्र में आयोजित किया जाता है. कुंभ की विशेष शक्तियां नदियों के ऊर्जावान जल और विशेष ग्रह-नक्षत्र के संयोग से उत्पन्न होती हैं.
गंगा और यमुना नदियों के संगम पर प्रयागराज स्थित है. यह एकमात्र कुंभ है जो नदियों के संगम पर आयोजित किया जाता है. यह चारों कुंभों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. गंगा और यमुना हिमालय से अलग-अलग आध्यात्मिक ऊर्जा लाती हैं और प्रयागराज में उनके मिलन से और भी अधिक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है. जैसे यदि दो बहनें बीस साल बाद मिलें तो वे एक दूसरे के साथ एक गहरी ऊर्जा को महसूस करती हैं. अतः प्रयाग के कुंभ का वास्तविक उद्देश्य हिमालय से गंगा और यमुना द्वारा लायी गयी आध्यात्मिक शक्तियों पर निर्भर करता है.
आध्यात्मिक ऊर्जा| हिमालय| हरिद्वार| नरोरा| हथनीकुंड| काली नदी
वर्तमान समय में यह आध्यात्मिक ऊर्जा दो तरह से खंडित हो रही है. पहला कारण यह कि हिमालय से आने वाले उर्जावान जल वर्ष के अधिकांश समय में प्रयागराज तक नहीं पहुँचता है क्योंकि गंगा का पानी हरिद्वार और नरौरा में लगभग पूरी तरह से निकाला जा रहा है. नरोरा बराज के नीचे हम सुखी हुई गंगा नदी की स्थिति नीचे दिए गए चित्र में देख सकते हैं.
इसी प्रकार से यमुना का पानी पूरी तरह से हथिनीकुंड में निकाल लिया जाता है जिसे हरियाणा और यूपी को सिंचाई के लिए दे दिया जाता है. हथनीकुंड बराज के नीचे हम यमुना नदी की स्थिति निचे दिए गए चित्र में देख सकते हैं.
नरौरा बराज के बाद गंगा लगभग सूखी हो जाती है और प्रयागराज तक पहुंचने वाला पानी ज्यादातर काली और अन्य नदियों का होता है जो कि नरौरा बराज के बाद गंगा में मिलती हैं. इसी तरह प्रयागराज में पहुंचने वाला यमुना का ज्यादातर पानी चंबल नदी का होता है जो हथिनीकुंड बराज के बाद यमुना नदी में मिलती है. प्रयागराज में आज गंगा और यमुना नदियों का संगम नहीं बल्कि काली और चंबल नदियों का संगम है.
सरकार ने कुंभ मेले के दौरान प्रयागराज में भागीरथी नदी का पानी उपलब्ध कराने के लिए टिहरी बांध से अतिरिक्त पानी छोड़ने का प्रस्ताव रखा है. गंगा की दो सहायक नदियाँ हैं – भागीरथी और अलकनंदा. भागीरथी नदी पर टिहरी बांध का निर्माण किया गया है. लेकिन पहली समस्या यह है कि टिहरी बाँध से भागीरथी के प्रवाह को टरबाइनों के माध्यम से छोड़ा जा रहा है जिसके कारण भागीरथी के जल की आध्यात्मिक शक्तियां नष्ट हो रही हैं. दूसरी समस्या है कि भागीरथी के जल को टिहरी बाँध के पीछे एक झील में रोका गया है जिसके कारण यह दूषित जल में बदल चुका है.
टिहरी बाँध| मीथेन उत्सर्जन| अलकनंदा| विष्णुप्रयाग| श्रीनगर
टिहरी बांध का पानी निष्क्रिय हो गया है. उसमें ऑक्सीजन नहीं है. टिहरी बाँध से मीथेन जैसी जहरीली गैसों का उत्सर्जन हो रहा है जो इस बात का सूचक है कि पानी में ऑक्सीजन नहीं बची है. ऐसा पानी प्रयागराज में पहुंचने पर शायद ही आध्यात्मिक ऊर्जा लाएगा क्योंकि यह निष्क्रिय पानी है. इसी तरह अलकनंदा का पानी विष्णुप्रयाग और श्रीनगर के बांधों से टरबाइनों से होकर गुजरता है. जब पानी टरबाइन की ब्लेड से टकराता है तो पानी की आध्यात्मिक ऊर्जा स्वतः ही समाप्त हो जाती है. नवरात्र पूजा के दौरान एक कुम्भ में रखा हुआ पानी यदि मिक्सी में मैथ कार तीर्थयात्रियों पर छिड़का जाता है तो शायद ही इस पानी में आध्यात्मिक ऊर्जा का आभास होगा.
इस प्रकार भागीरथी का पानी भी टिहरी बाँध की टर्बाइनों से होकर प्रयाग पहुचता है, अलकनंदा का पानी विष्णु प्रयाग और श्रीनगर के टर्बाइनों से होकर प्रयाग पहुचता है, और यमुना का पानी इचरी जलविद्युत परियोजना के माध्यम से प्रयाग पहुचता है. प्रयागराज में पहुंचने वाला पानी आज आध्यात्मिक ऊर्जा से रहित ही है.
गंगा के मैदान| उत्तर प्रदेश| भूजल पुनर्भरण| बराज
समाधान यह है कि हमें टिहरी जैसे बड़े बांधों को हटाना होगा और गंगा के मैदानी इलाकों में भूजल पुनर्भरण करना होगा. टिहरी बांध की क्षमता 2.6 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जबकि उत्तर प्रदेश में भूजल एक्विफरों में लगभग 70 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी संग्रहित किया जा सकता है. टिहरी बाँध की तुलना में हम उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में 30 गुना अधिक पानी संरक्षित कर सकते हैं.
नदी के तट पर स्थित भूजल एक्वीफर्स का भरण बारिश के पानी से होता है तो पानी की कुछ मात्रा नदी में लगातार रिसता रहता है जिसे “नेचुरल डिस्चार्ज” कहा जाता है. यह पानी नदी को पुनर्जीवित करता है. इसी तरह हमें हथिनीकुंड बैराज को हटाना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि यमुना की आध्यात्मिक ऊर्जा से आवेशित पानी प्रयागराज तक पहुंचे. हम तीर्थयात्रियों को इन तथ्यों को नहीं बताकर एक बड़ी गलती करते हैं जिस पर जल्द सुधारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है.