पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन हो रहा है क्योंकि मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि करना मुश्किल है. जलविद्युत् परियोजनाओं के कारण कई समस्याए पैदा हो रही है जैसे
कृषि भूमि का डूबना, नदी के पानी की गुणवत्ता में गिरावट, जंगलों में चराई का मुश्किल होना , भूस्खलन और भूकंप का बढ़ना, गंदे पानी के कारण कई रोगों में वृद्धि, नदी से रेत का नुक्सान और पर्यटन को नुक्सान.
हालांकि स्थानीय लोगों को जलविद्युत परियोजना के निर्माण के दौरान रोजगार दिया गया है लेकिन कुछ समय के लिए. उसके बाद स्थानीय लोग बेरोजगारी का सामना करते हैं. तब तक उन्होंने इन परियोजनाओ को अपनी भूमि दे दी होती है. जिस कारण उनका पलायन करना मज़बूरी बन जाती है.
हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का उद्देश्य बिजली बनाकर आर्थिक विकास करना है. हमें शिक्षा ,स्वास्थ्य, पर्यटन, सोफ्टवेयर, हर्बल पार्क जैसी सेवाओ के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देने पर विचार करना चाहिए. पहाड़ों में युनिवर्सिटियां, सोफ्टवेयर पार्क, अस्पताल, कॉलसेंटर आदि विकसित किये जा सकते हैं. इन क्षेत्रों के माध्यम से हुए आर्थिक विकास में जलविद्युत परियोजनाओ से होने वाले नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है.
मैनुफेक्चरिंग सेक्टर में ज्यादा बिजली की आवश्यकता होती है जो जल विद्युत् परियोजनाओ को लगाने का कारण बन जाती है. इनसे गंगा नष्ट हो रही है. इसके विपरीत सेवा क्षेत्रों में बिजली की खपत कम होती है. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ बेंगलुरु के पूर्व प्रोफ़ेसर डॉ भरत झुनझुनवाला की एक रिपोर्ट के अनुसार मनुफेक्चारिंग सेक्टर से 1% विकास की वृद्धि के लिए 1.48 % बिजली की खपत बढ़ती है. वहीँ सेवा क्षेत्र से 1% विकास के लिए मात्र 0.15% बिजली की खपत बढ़ती है. ( रिपोर्ट यहाँ संलग्न है )
इसके अलावा भविष्य सेवा क्षेत्र में निहित है. सेवा क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है जबकि मैनुफेक्चरिंग क्षेत्र धीरे धीरे बढ़ रहा है.
हम ऊपर तालिका में देख सकते हैं की सेवा क्षेत्र में 9.2 लाख नौकरियों का निर्माण हुआ है जबकि मैनुफेक्चरिंग सेक्टर से 1.4 लाख लोगों को रोजगार घटा है. इस प्रकार सेवा क्षेत्र रोजगार पैदा करेगा और पलायन को रोकने में मदद करेगा. सेवा क्षेत्र से रोजगार मिलने के साथ साथ बिजली की आवश्यकता भी कम होगी तथा जल विद्युत् परियोजनाओ से हमारी नदियों को होने वाले नुक्सान से बचाया जा सकेगा.
हम प्रधानमंत्री श्री मोदी जी से आग्रह करते हैं कि वे सेवा क्षेत्रों को बढ़ावा दे और जलविद्युत के लिए नदियों को नुक्सान पहुंचाने की नीति को छोड़ें.
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