इस समय देश के तमाम क्षेत्रों में बाढ़ का प्रकोप छाया हुआ है. इसका तात्कालिक कारण यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्षा कम समय में अधिक मात्रा में हो रही है. जो वर्षा पहले तीन महीने में होती थी अब वह कम ही दिनों में ज्यादा तेजी से होती है. जिसके कारण नदियों में पानी एकाएक बढ़ जाता है और इसका निकास न होने के कारण बाढ़ आ रही है. वर्षा के पैटर्न में इस बदलाव के कारण हमें नदियों के बाढ़ के पानी को वहन करके समुद्र तक पहुंचाने की क्षमता में वृद्धि करनी होगी. तब ही तीव्र वर्षा के पानी को नदियाँ निकाल कर ले जायेंगी और बाढ़ नहीं आएगी.
लेकिन हम नदियों के क्षेत्र को बढ़ाने के बजाय उसमे लगातार कटौती कर रहे हैं. इस पोस्ट में हम बताने का प्रयास करेंगे कि केरल में किस प्रकार रिवरबेड में एनक्रोचमेंट के कारण बाढ़ आई है.
-
पुल से अवरोध
नीचे दिए चित्र नंबर 1 में पटाम्म्बी नदी पर बने पुल को आप देख सकते हैं. इस पुल के दाहिनी तरफ पानी स्थिर है वह एक तालाब रूप में परिवर्तित हो गया है.
जबकि बायीं तरफ आप देख रहे हैं कि पानी तेजी से बह रहा है. इस प्रकार यह पुल नदी के बहाव में एक अवरोध पैदा कर रहा है. इस अवरोध के कारण दाहिने, यानी ऊपर के क्षेत्र में पानी का जलस्तर बढ़ रहा है जिससे बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा है.
इसी प्रकर आप नीचे चित्र नंबर 2 में देख सकते हैं कि थ्रिसुर जिले में करुवन्नुर नदी पर सड़क के ऊपर से पानी बह रहा है. सड़क के नीचे से पानी के निकलने का पर्याप्त रास्ता न होने के कारण नदी के उपरी हिस्से में पानी बढ़ गया और बाढ़ का रूप ले लिया.
-
रिहायशी मकान
नदी को फैलने का मौका चाहिए. सामान्य रूप से नदी का पाट “V” आकार में होता है. जैसे-जैसे नदी का जलस्तर बढ़ता है वैसे ही नदी का क्रॉस-सेक्शन बढ़ता है और नदी की जल वहन करने की क्षमता भी बढती है. लेकिन हमने नदी के किनारे रिहायशी मकान बनाकर नदी का आकार “V” से “U” में बदल दिया है.
इद्दुक्की जिले में पेरियार नदी के किनारों पर बने यात्री विश्राम गृह आप नीचे दिए गए चित्र न. 3 में देख सकते हैं. इससे नदी का पाट संकुचित हो गया है और नदी की पानी वहन करने की क्षमता कम हो गयी है.
इसी प्रकार चित्र न 4 में दिखाया गया है कि एर्नाकुलम जिले के चलक्का शहर में नदी के पाट पर बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी गयी हैं. इनकी वजह से नदी का क्षेत्र कम हो गया है.
-
जलविद्युत परियोजनाएं
केरल में लगभग 35 जलविद्युत परियोजनाएं बनी हुई हैं. इन जलविद्युत परियोजनाओं में नदी के पानी को टर्बाइन चालन हेतु निकालने के लिए नदी के ऊपर बैराज बनाया जाता है. जब बाढ़ आती है तो यही बैराज एक अवरोध बन जाता है. आप नीचे दिए गए चित्र न 5 में देख सकते हैं कि मुलापेरियार जल विद्युत परियोजना में जो बैराज बनाया गया है उसके ऊपर जल भराव हो गया है जिसके कारण नदी की जल वहन करने की क्षमता कम हो गयी है.
-
सिंचाई
केरल में खेती के लिए नदी के किनारे की जमीन को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया गया है. नीचे दिये गए चित्र नं 6 में आप देख सकते हैं कि कासरगोड जिले में पयस्विनी नदी पर मिट्टी की दीवार बनाकर नदी का मार्ग अवरोधित किया गया है जिससे सिंचाई के लिए पानी निकाला जा सके. इस प्रकार नदी का स्वतंत्र प्रवाह ख़त्म होता है और जल का फैलाव क्षेत्र बढ़ता है.
-
सारांश
इन मानवीय कृत्यों से केरल के लोगों ने नदी के क्षत्र को संकुचित कर दिया है. पहले ही ग्लोबल वार्मिंग के कारण बाढ़ आने की सम्भावना ज्यादा हो गयी है और ऊपर से नदी के पाट को अनेक तरह से छोटा करके नदी की बहाव क्षमता को कम किया जा रहा है, जिसके कारण केरल में 300 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी और बाढ़ से भीषण नुक्सान हुआ. जितना लाभ पुल, जलविद्युत परियोजनाएं, रिहायशी इलाकों का विस्तार करने से हुआ होगा उससे ज्यादा नुक्सान इस बाढ़ से हो चुका है. अतः सरकार को चाहिए कि पूरे देश के लिए नदी के पाट को संरक्षित करने के लिए कदम उठाए.