टिहरी जैसे बड़े बांधों को बनाने के दो उदेश्य होते हैं. एक उदेश्य बरसात के पानी का संग्रहण है, जिसे जाड़े और गर्मियों में सिंचाई आदि के लिए छोड़ा जाता है. दूसरा उद्देश्य बिजली का उत्पादन है.
पानी के विषय में, वर्षा की मात्रा मैदानी इलाकों में पहाड़ों की तुलना में कई गुना ज्यादा होती है. ऐसे तमाम उदाहरण उपलब्ध हैं जिनमे मैदानी इलाकों में वर्षा के पानी का संग्रहण करके हम अच्छी खेती कर सकते हैं. अतः पानी के संग्रहण के उदेश्य के लिए टिहरी जैसे बाँध बनाना संदेहपूर्ण विकल्प है. इस विषय में हमारी विस्तृत पोस्ट पढ़ें.
इस पोस्ट में हम देखेंगे कि टिहरी जैसे परियोजनाओं से बिजली बनाने के स्थान पर यदि डूब क्षेत्र में सोलर पैनल लगा दिए जाएँ तो बाँध से ज्यादा बिजली बन सकती है.
वर्तमान तकनीकों के अनुसार एक एकड़ भूमि में सोलर पैनल लगाकर, एक वर्ष में 375 मेगावाट घंटा बिजली का उत्पादन हो सकता है. (इस सम्बन्ध में श्री शंकर शर्मा द्वारा दी गई गणना नीचे देखें.) साधारणतः हम बिजली को किलोवाट घंटे में नापते हैं. यानि एक किलोवाट के यन्त्र, अर्थात जैसे गरम पानी के हीटर को एक घंटे तक चलाने में जो बिजली लगती है उसे एक किलोवाट घंटा या kilowatt hour या kWh कहते हैं. 375 मेगावाट घंटा बिजली का अर्थ हुआ की जैसे गरम पानी के हीटर को 375,000 घंटे तक चलाने की बिजली हम एक एकड़ भूमि में सोलर पैनल लगाकर प्राप्त सकते हैं.
टिहरी बाँध का क्षेत्रफल 52 वर्ग किलोमीटर है. एक वर्ग किलोमीटर में 247 एकड़ होते हैं. इस हिसाब से इस झील के क्षेत्र में यदि सोलर पैनल लगा दिए जाएँ तो 4816,000 मेगावाट घंटा बिजली का उत्पादन हो सकता है. (52x247x375=4816000). इसकी तुलना में वर्तमान में जलविद्युत से टिहरी में उत्पादन लगभग 3000 गीगावाट घंटा प्रतिवर्ष होता है.(नीचे देखें) यदि हम टिहरी बाँध को हटा दें, इसकी झील के पानी को निकाल दें, और उस भूमि पर सोलर पैनल लगा दें, तो हम बिजली का उत्पादन 4816,000 मेगावाट घंटा से बढ़ाकर 3000,000 मेगावाट घंटा पर ले जा सकते हैं. अर्थात जहाँ तक बिजली उत्पादन का सवाल है, टिहरी जैसी जलविद्युत परियोजना की तुलना में सोलर पावर ज्यादा उपयुक्त है.
लगभग ऐसी ही परिस्थिति उत्तराखंड और नेपाल सीमा पर प्रस्तावित पंचेश्वर की है. बाँध की झील का क्षेत्रफल 211 वर्ग किलोमीटर होगा. इस भूमि पर यदि हम सोलर पैनल लगा दें तो 19,500,000 मेगावाट घंटा बिजली का उत्पादन कर सकते हैं. इसकी तुलना में पंचेश्वर बाँध से अनुमानित बिजली उत्पादन केवल 11,885,000 मेगावाट घंटा है. अतः यदि बिजली ही बनानी है तो पंचेश्वर बाँध बनाने के स्थान पर उसी भूमि पर यदि सोलर पैनल लगा दिए जाएँ तो हमें अधिक बिजली मिल सकती है.
जलविद्युत परियोजनाओं का एक सार्थक पक्ष यह है कि इसका उत्पादन मनचाहे समय पर किया जा सकता है. बिजली की मांग सुबह और शाम को ज्यादा होती है. जलविद्युत परियोजना की टर्बाइन को जरुरत के समय शुरू और बंद किया जा सकता है. सोलर पैनल में समस्या है कि इसका उत्पादन दिन के समय होता है जबकि जरुरत सुबह और शाम को ज्यादा होती है. लेकिन अब ऐसी तकनीकें उपलब्ध हैं जिससे सोलर पैनल द्वारा उत्पादित बिजली को सुबह और शाम को इस्तेमाल करने में केवल 30-40 पैसा प्रति यूनिट का अतिरिक्त खर्च पड़ता है.
अतः हमारा मानना है कि सिंचाई के लिए मैदानी इलाकों में जल का संग्रहण करना चाहिए और बिजली उत्पादन के लिए पट्ठारी और ऊसर जमीनों पर सोलर पैनल लगा कर बिजली उत्पादन करना चाहिए. टिहरी बाँध को हटा देना चाहिए जिससे बिजली का उत्पादन बढ़ सके और पंचेश्वर जैसे बांध बनाने से पीछे हटना चाहिए.
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