गढ़वाल विश्वविद्यालय को सौंपी गयी गंगा सफाई की जिम्मेदारी

गंगा संरक्षण के लिए हे..गढ़वाल विश्वविद्यालय और राज्य सरकार के बीच MOU साईंन किया गया (फोटो साभार: दीप जोशी, हिंदुस्तान टाइम्स)

 

हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की उपस्तिथि में गढ़वाल विश्वविद्यालय को गंगा की सफाई की जिम्मेदारी दी है.  गंगा को जीवित रखने की दृष्टि से सरकार का यह एक उत्तम निर्णय है.


 

गंगा के गंगत्व उसके अविरल प्रवाह से बनता है, यह बात चार शंकराचार्यों ने कही है. लेकिन हे.न.ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय ही गंगा के ऊपर जल विद्युत परियोजनाओं  को बनाने में सहयोग कर रही है.  एक तरफ तो गंगा की आत्मा को अविरल प्रवाह से रोक कर विश्वविद्यालय मार रही है, तो दूसरी तरफ गंगा की सफाई करने का अनुबंध कर रही है.

 

गंगा के अविरल प्रवाह को खंडित करने में विश्वविद्यालय द्वारा कोटलीभेल 1B परियोजना का EIA स्पष्ट उदाहरण है.

 

कोटलीभेल 1B का EIA विश्वविद्यालय ने किया है. EIA की रिपोर्ट के अनुसार “हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड के वानिकी विभाग के प्रोफेसर कहते हैं कि जल विद्युत परियोजनाओं  के बनने से उत्तराखंड के पर्यावरण को कोई नुक्सान नहीं है.

 

The water environment of river Ganga and Nayar due to proposed project will have minor impact on the water or quality and aquatic fauna of temporary nature.  The project is going to receive silt-free water from upstream reservoir and also the project is run of the river HE projects.”  

 

परियोजना के कारण होने वाले सभी पर्यावरणीय, आर्थिक, जलीय, मानविक, वायु-मंडलीय आदि नुकसानों को छिपाने का प्रयास किया गया है. रिपोर्ट में हम देख सकते हैं कि परियोजनाओं द्वारा पड़ने वाले वास्तविक कारणों पर वानिकी विभाग ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

 

परियोजना के निर्माण से दुष्प्रभाव के कुछ बिंदु नीचे बताये गये हैं जिनके बारे में वानिकी विभाग द्वारा कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी गयी है:

 

  • वन भूमि के जलमग्न होने के प्रभाव का कोई मूल्यांकन नहीं किया गया है.
  • जलाशय बनाने के कारण संभावित भूस्खलन का कोई आकलन नहीं दिया गया है. अलकनंदा नदी के रेतीले flanks का कोई भूवैज्ञानिक मूल्यांकन दिया गया है.
  • एक टरबाइन को चलाने के लिए पानी की न्यूनतम आवश्यकता नहीं दी गई है.
  • ग्लेशियरों के पिघलने और ग्लोबल वार्मिंग के कारण पानी के प्रवाह में होने वाली संभावित कमी नहीं बताई गयी है.
  • भंडारण जलाशय बनाने के कारण अलकनंदा नदी के पानी में ऑक्सीजन में कमी नहीं दी गई है.
  • कोटलीभेल 1B जलाशय बनने के बाद होने वाले कार्बन उत्सर्जन का जिक्र नहीं किया गया है.
  • बादल फटना, अपस्ट्रीम बाढ़ और अपस्ट्रीम बांधों के ढहने जैसे कारणों के लिए कोटलिबल 1 बी बांध की क्षमता नहीं दी गई है. इत्यादि (विस्तृत जानकारी रिपोर्ट में मौजूद है)

 

 विश्वविद्यालय  की ज़िम्मेदारी बनती है कि कोटलीभेल 1B के साथ तमाम परियोजनाओं का अध्ययन कर के सही बात जनता को बताएं.  नीचे दी गयी तालिका में हम अलकनंदा नदी में स्वीकृत जल विद्युत परियोजनाओं की स्तिथि को देख सकते हैं-

 

गंगा नदी में प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाएं

Name of Dam Type of Dam Capacity in MW Length of reservoir Length of Tunnel Length of River Affected due to tunnel diversion Total Length of River Affected
Badri Nath Not Known 260 1* 10* 13* 14
Vishnu-Prayag Run of River 400 1 11 14* 15
Vishnugad-Pipalkoti Run of River 444 1 13 18* 19
Bowala Nandprayag (under survey) Run of River 132 1* 10* 13* 14
Karn Prayag (under survey) Run of River Not known 1* 15* 18* 19
Utyasu (under survey) Not known Not known 1* 15* 18* 19
Srinagar (under survey) Run of River 330 5* 15* 20* 25
Kotlibhel-1B Reservoir 320 27 0 1 28
Kotlibhel-II Reservoir 520 25 0 1 26
Total 63 116 179

 

बद्रीनाथ से कौडियाला की 270 किलोमीटर की दूरी में, 179 किलोमीटर के क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाएं बन रही हैं, यही नहीं कुछ और भी परियोजनाएं भविष्य के लिए प्रस्तावित हैं.

 

अतः एक तरफ तो हम गंगा के संरक्षण के लिए गंगा की सफाई का दायित्व विश्वविद्यालय को दे रहे हैं और वहीँ दूसरी तरफ विश्वविद्यालय के शिक्षक जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण को बढ़ावा देकर गंगा का नुक्सान कर रहे हैं. क्या वाकई में सरकार की यह नीति गंगा संरक्षण के लिए लाभकारी होगी?

 

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