गर्भगृह पर भाजपा की राम मंदिर बनाने की मांग क्यों?

चित्र 1: अयोध्या में वर्तमान बाबरी मस्जिद व प्रस्तावित राम मंदिर का मॉडल

वर्तमान सरकार का एक प्रमुख राजनैतिक मुद्दा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना है.सरकार के इस संकल्प के पीछे मान्यता यह है कि जिस स्थान पर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ है उसी स्थान पर भगवान् राम का मंदिर बनाया  जाये क्योंकि वह स्थान हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है अतः मंदिर गर्भगृह के मूल स्थान पर ही बनना चाहिए.

लेकिन दूसरे स्थानों पर सरकार मंदिरों को उसी स्थान पर बनाये रखने के विरूद्ध कार्य कर रही है. उत्तराखंड में अलकनंदा के तट पर विशाल चट्टान पर धारी देवी का मंदिर स्थित था. जिसका मूल चित्र नीचे दिया जा रहा है.

चित्र 2: उत्तराखंड के श्रीनगर में स्थित माँ धारी का प्राचीन मंदिर

धारी मंदिर की मान्यता

वर्तमान में इस मूल शिला का नामोनिशान भी नहीं बचा है. दरअसल यहाँ श्रीनगर जलविद्युत परियोजना बनाने के कारण झील बनी और मंदिर की शिला को झील में डुबा दिया गया. वर्तमान में उसी स्थान पर खम्बों पर एक नया मंदिर बना कर के धारी देवी की प्रतिमा को नीचे से उठा कर नए मंदिर में स्थापित कर दिया गया है. इस बांध को 2014 में भाजपा सरकार के केंद्र सत्ता में आने के बाद चालू किया गया था (फोटो 3). भाजपा चाहती तो जन भावनाओं का सम्मान करते हुए इसे रोक सकती थी पर सरकार नें ऐसा नहीं किया.

चित्र 3: धारी देवी का नवीन मंदिर

मान्यता है कि देवी की प्रतिमा जिसे ऊपर स्थापित किया गया है,वह  केदारनाथ के समीप स्थित कालीमठ से बह कर इस स्थान पर आई थी और इसे उठाकर मूल शिला पर स्थापित किया गया था. मूल महत्त्व उस शिला का है जिस पर माँ धारी की प्रतिमा को स्थापित किया गया था. आज उस शिला को पानी में डुबा दिया गया है और उसे ऊपर नहीं उठाया गया ह, अर्थात धारी मंदिर की जिस शिला की मूल रूप से पूजा होती थी उसको डुबाने के लिए भाजपा सरकार ने अपनी सहमति दी है.

एक तरफ सरकार अयोध्या में राम जन्मभूमि के स्थान पर मंदिर बनाने के लिए पूरे देश में आन्दोलन चला रही है. दूसरी तरफ धारी शिला को डुबाने को तैयार है. कारण यह दीखता है कि धारी शिला के सन्दर्भ में कमर्शियल इंटरेस्ट हावी है. धारी शिला को डुबाने वाली जलविद्युत परियोजना को हैदराबाद की जी.वी.के. कंपनी द्वारा बनाया गया है. जी.वी.के. कंपनी के वाणिज्यिक स्वार्थों की रक्षा के लिए भाजपा ने धारी शिला को डुबा दिया है.

यहाँ पर हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि विषय बिजली के उत्पादन का नहीं है क्योंकि बिजली उत्पादन के लिए  अनेकों सौर ऊर्जा के जैसे विकल्प मौजूद हैं किन्तु धारी शिला का विकल्प नहीं है, अतः धारी शिला को डुबाना मूलतः जी.वी.के. कंपनी के कमर्शियल इंटरेस्ट को बढ़ाने के लिए किया गया है जिससे कि जनभावनाओं की अनदेखी हुई है और जो अनुचित है.

अब भाजपा की नजर कालीमठ मंदिर पर है. यह मंदिर कालीगंगा के तट पर स्थित है.

चित्र 4: गूगल अर्थ द्वारा कालीमठ का दृश्य

मान्यता है कि गंगा नदी देवप्रयाग में अस्तित्व में आती है. देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा नदी का संगम होता है. अलकनंदा की एक सहायक नदी मन्दाकिनी है, और मन्दाकिनी की एक सहायक नदी कालीगंगा है.कालीगंगा का विडियो आप यहाँ पर देख सकते हैं.

 

कालीगंगा पर कालीमठ

कालीगंगा नदी के तट पर कालीमठ सिद्धपीठ स्थित है. मान्यता है कि कालीमठ में देवी माँ काली का अवतार हुआ था, और इस स्थान पर उन्होंने रक्तबीज राक्षस का वध किया था. मूल स्थान पर एक दिव्य कुण्ड है. कुण्ड के ऊपर चांदी का ढ़क्कन लगा हुआ है. मान्यता है कि माँ काली रक्तबीज का वध करने के बाद कुंड में समा गई थी. कालीमठ में कालीकुंड की स्थिति नीचे साफ़ देखी जा सकती है.

चित्र 5: कालीमठ में स्थित देवी कुंड जहाँ पर देवी समा गई थी

उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने जन भावनाओं की अनदेखी करके योजना बनायी है कि कालीगंगा को एक टनल में डाल दिया जाये और कालीमठ के नीचे इसे पाइपों के माध्यम से पॉवर हाउस तक ले जाया जाये. वहां पर इस पानी से बिजली बनाकर वापस कालीगंगा में डाल दिया जाये. नीचे हम उस पाइप का चित्र दे रहे हैं जिसके माध्यम से यह पानी पॉवर हाउस तक जायेगा और आस पास पड़े उपकरणों का चित्र दे रहे हैं जो कि इस स्थान पर पॉवर हाउस निर्माण में काम आयेंगे.

चित्र 6: कालीगंगा पर निर्माणाधीन बाँध कार्य

इस प्रोजेक्ट के बनने के बाद काली गंगा मृतप्राय हो जाएगी. नीचे दिए गए चित्र से समझा जा सकता है जैसे कि विष्णुप्रयाग बाँध बनने के बाद अलकनंदा का पानी बिकुल सूख चुका है. इसी प्रकार से कालीमठ के सामने कालीगंगा भी टनल में डाले जाने के बाद सूख जाएगी. कालीगंगा के सूख जाने से कालीमठ के मंदिर का सौन्दर्य भी जाता रहेगा.

चित्र 7: विष्णुप्रयाग में जलविद्युत परियोजना के बाद अलकनंदा नदी की स्थिति

एक तरफ भाजपा राम मंदिर को उसी जगह बनाने के लिए पूरे देश में आन्दोलन छेड़ रही है और दूसरी तरफ धारी शिला को पानी में डुबा दिया है और कालीमठ की कालीगंगा को सुखाने के लिए प्रयासरत है. इस विरोधाभास से भाजपा सरकार को उबरना चाहिए. जिस प्रकार भाजपा को राम जन्मभूमि का महत्व दिखता है उसी प्रकार से अन्य मंदिरों और नदियों को जलविद्युत परियोजनाओं से बचाना चाहिए.

 

वेब्साईट समर्थित द्वारा : डॉ. भरत झुनझुनवाला, स्वामी शांतिधर्मानंद, देबादित्यो सिन्हा, विमल भाई.

पोस्ट लिखित द्वारा : अशोक रावत

 

 इस विषय पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को लिखें