गंगा एक्ट के तहत क्यों नहीं बन रहा क़ानून?

गंगा एक्ट केन्द्रीय मंत्रालय में उमा भारती जी के सामने रखा गया

प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने के शीघ्र बाद श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि गंगा से हमें कुछ लेना नहीं है, सिर्फ देना ही देना है. इस मनतव्य  को पूरा करने के लिए आपके द्वारा श्री गिरिधर मालवीय की अध्यक्षता में एक कमिटी बनायीं गयी जिसका कार्य गंगाजी के लिए एक कानून का प्रारूप तैयार करना था. श्री गिरिधर मालवीय, मदन मोहन मालवीय के पुत्र एवं इलाहबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज रहें हैं. श्री गिरिधर मालवीय द्वारा गंगा कानून का प्रारूप सरकार को अप्रैल 2017 में सोंप दिया गया है. इस पोस्ट में हमने गंगा कानून के प्रारूप की चर्चा श्री सानंद स्वामी जी (पूर्व प्रोफेसर, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, कानपुर) के साथ की और उस चर्चा के आधार पर इस कानून के मुख्य बिंदु पाठक के सामने रखना चाहते हैं. (गंगा एक्ट को विस्तार से नीचे देखें).

सानंद स्वामी जी गंगा के विषय में चिंतित

गंगा कानून का सबसे अच्छा पक्ष (Chapter 1, section 3) यह है कि गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा उसी प्रकार मिल जायेगा जिस प्रकार “जन गण मन” को राष्ट्रीय गान, “मोर” को राष्ट्रीय पक्षी और “तिरंगे” को राष्ट्रीय झंडे का पद मिला हुआ है.

वर्ष 2008 में गंगा को भी राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया गया

गंगा कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि उत्तराखंड में गंगा के पंचप्रयागों पर मिलने वाली सभी धाराओं को गंगा की परिभाषा में शामिल किया गया है. इन धाराओं की मूल धारा अलकनंदा है. विष्णुप्रयाग पर धौली गंगा, नंदप्रयाग पर नंदाकिनी, कर्णप्रयाग पर पिंडर, रुद्रप्रयाग पर मंदाकिनी और देवप्रयाग पर भागीरथी, अलकनंदा में मिलती हैं. भागीरथी के देवप्रयाग में मिलने के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है. अब तक गंगा पर मुख्यतः भागीरथी के श्रोत गौमुख से गंगासागर को शामिल किया जाता था. अब इसमें इन सभी धाराओं को शामिल किया गया है. (chapter 1, section 4t) यह कानून का सार्थक पक्ष है. फिर भी इसमें सरकार को विचार करना चाहिए कि सोम, दामोदर, महानंदा और चम्बल जैसी नदियाँ जो गंगा में अधिक मात्रा में पानी लाकर डालती हैं उन्हें भी गंगा की परिभाषा में शामिल किया जा सकता था.

गंगा कानून में सुझाव दिया गया है कि गंगा के प्रवाह की निरंतरता बनायीं रखी जाएगी. साथ ही कानून में जल विद्युत परियोजनाएं तथा सिंचाई के लिए बनाये गये बैराजों को स्वीकार किया गया है.(Chapter 4, section 7.7) अतः कानून के अनुसार निरंतरता का अर्थ हुआ कि गंगा के प्रवाह में अवरोध बना दिए जायें. लेकिन अवरोध से कुछ पानी निरंतर छोड़ा जाये. जैसे बाल्टी में एक तरफ से पानी भरा जाये तथा और दूसरी तरफ से निरंतर छोड़ा जाये, तो वह निरंतर प्रवाह माना गया है. हमारी दृष्टि में यह पर्याप्त नहीं है. गंगा के पानी की गुणवत्ता बनाने में गंगा की मिट्टी तथा गंगा में पलने वाली मछलियों का विशेष योगदान है. उत्तराखंड में महासीर और निचले हिस्से में हिलसा विशेष मछलियाँ हैं. यह मछलियाँ नीचे से पलायन करके ऊपर जाकर अंडे देती हैं और अंडे, छोटे बच्चों में ऊपर बड़े होते हैं. और फिर ये छोटी मछलियां पानी के साथ नीचे आकर बड़ी होती हैं. इन मछलियों के जीवन चक्र में ऊपर जाना और नीचे आना एक अहम हिस्सा है. सिंचाई के बैराजों और जल विद्युत परियोजनाओं से यह आवाजाही बाधित हो जाती है जिससे मछलियों की हानि होती है. जैसे महासीर मछली पूर्व में 100 किलो तक पाई जाती थी अब यह लगभग 1 किलो की रह गयी है.

गंगा नदी में विलुप्ति की कगार पर हैं महसीर और हिलसा मछलियां

इसी प्रकार टिहरी जैसे बांधो के पीछे पानी रुकने से पानी सड़ने लगता है. उसमें कार्बन मोनो ऑक्साइड और मिथेन जैसी जहरीली गैसें बन रही हैं. अतः गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए जरूरी था कि इन परियोजनाओं के डिजाईन में परिवर्तन किया जाता जिससे की गंगा की मूल धारा बिना किसी बाधा के बहती रहती. लेकिन गंगा कानून में इस पक्ष पर विचार नही किया गया है.

कानून में व्यवस्था है कि गंगा के पानी की गुणवत्ता को सुनिचित किया जायेगा. (chapter 4, section 8) लेकिन गुणवत्ता के मापदंड मुख्यतः केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पीने के पानी के मापदंड के अनुरूप माने जाते हैं जिनमें ऑक्सीजन, धुंधलापन इत्यादि देखा जाता है. नदी के पानी के ये गुण हमारे देश की तमाम नदियों में पाए जाते हैं. इनसे गंगा की विशेषता साबित नहीं होती है. गंगा की विशेषता के दो अध्ययन किये गए हैं. नेशनल इन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट नागपुर ने पाया कि गंगा में अच्छे बेक्टीरिया (coliphage) होते हैं जो कि नुकसानदेह बेक्टीरिया (coliform) को खा जाते हैं.

गंगा नदी की शुद्धता का आधार: कालिफ़ाज

इंस्टिट्यूट ऑफ़ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी चंडीगढ़, ने पाया गंगा के बेक्टीरिया में रोगबाधक शक्ति होती है. गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए जरूरी था कि पानी की इन विशेषताओं के आधार पर गुन्वात्त्ता के मानदंड स्थापित किये जाते और सुनिश्चित किया जाता कि इन बेक्टीरियों का संरक्षण किया जायेगा.

कानून में व्यवस्था है कि 35 प्रतिशत पानी पर्यावरणीय प्रवाह के रूप में छोड़ा जायेगा.(chapter 4, section 7) हमारा मानना है की गंगा का मूल अस्तित्व अध्यात्मिक और सामाजिक है. अतः अध्यात्म और समाज की दृष्टि से कम से कम 51 प्रतिशत पानी छोड़ा जाना चाहिए और 49 प्रतिशत पानी का उपयोग सिंचाई अथवा जल विद्युत परियोजनाओ के लिए किया जाना चाहिए.

पर्यावारानिय प्रवाह हेतु नदी का इस प्रकार से विभाजन कर के भी जल निकाला जा सकता है

गंगा कानून में व्यवस्था है कि कानून के अंतर्गत बनायीं गयी नियंत्रक काउंसिल में 5 विशेषज्ञों को समाहित किया जायेगा.(schedule 1, section 11) लेकिन इन विशेषज्ञों की पृष्ठ भूमि पर चर्चा नहीं की गयी है. जरूरी है कि उन 5 विशेषज्ञों को ही इसमें सदस्य बनाया जाये जो गंगा के प्रति समर्पित हैं.

यह सरकार की अच्छी पहल है कि गंगा के लिए एक अलग कानून बनाने के लिए मालवीय जी की कमिटी स्थापित की गयी. लेकिन दुर्भाग्य है कि अप्रैल 2017 में इस कमिटी की रिपोर्ट दी जाने के एक साल बाद भी इसमें कानून बनाने के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाये हैं. (गंगा एक्ट पर सानंद स्वामी जी के तथ्यों को विस्तार से नीचे देखें)

ऊपर बताई गयी कमियों के बावजूद हम इस बात का स्वागत करते हैं कि गंगा के लिए एक अलग कानून बनाने की मोदी सरकार ने पहल की है.

 

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