गंगाजल पवित्र क्यों है ?

गंगाजलविद्युत परियोजनाएंगंगा को नुकसाननेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूटरेडियोएक्टिव थोरियमलाभप्रद कीटाणुकॉलिफ़ाजकॉलिफॉर्म

सरकारी अधिकारी अक्सर कहते हैं कि जलविद्युत परियोजनाएं किसी भी तरह से गंगा को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं. वे पूछते हैं कि लोग इनका विरोध क्यों कर रहे हैं? हम आपको बताना चाहते हैं की गंगा के विशेष गुण क्या हैं और कैसे जल विद्युत् परियोजनाएं इनको नुकसान पहुंचा रही हैं.

नीरी(NEERI) ने की गंगा में वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफ़ज की खोज

नागपुर स्थित नेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट (नीरी, NEERI) भारत सरकार की एक अग्रणीय संस्था है. इस संस्था ने गंगा के पानी के विशेष गुणों का अध्ययन किया है. उन्होंने पाया कि गंगा के पानी में अधिक मात्रा में कॉपर यानी तांबा है जिसमें कीटाणु मारने की क्षमता होती है तथा इसके पानी में रेडियोएक्टिव थोरियम की भी सूक्ष्म मात्रा उपलब्ध है. इन तत्वों में जीवाणुनाशक गुण होते हैं जो बैक्टीरिया को मारने में मदद करते हैं.

नीरी (NEERI) ने पाया कि गंगा के पानी में विशेष प्रकार के लाभप्रद कीटाणु होते हैं जिन्हे कॉलिफ़ाज कहा जाता है. वास्तव में हर नदी और तालाब के पानी में दो प्रकार के कीटाणु होते हैं— कॉलिफॉर्म, जो कि हानिकारक होते हैं और कॉलिफ़ाज जो इन हानिप्रद कीटाणुओं को समाप्त करते हैं. इन कॉलिफ़ाज और कॉलिफॉर्म में पानी के अन्दर लगातार युद्ध चलता रहता है. NEERI ने पाया कि गंगा के कॉलिफ़ाज की विशेष क्षमता है कि सामान्य रूप से एक कॉलिफॉर्म को मारने के लिए विशेष प्रकार का कॉलिफ़ाज ही उपयुक्त होता है. जैसे मलेरिया के कोलिफॉर्म को उसी के समकक्ष कॉलिफ़ाज द्वारा नष्ट किया जाता  है. लेकिन गंगा में पाए जाने वाले कॉलिफ़ाज की विशेष क्षमता है कि एक ही कॉलिफ़ाज कई प्रकार के कॉलिफॉर्म को एक साथ समाप्त कर सकता है.

नीरी(NEERI)| अद्वितीय कॉलिफ़ाज| गंगा नदी का चरित्ररेडियोएक्टिव थोरियमवाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफ़ाजकांवड़ यात्रा|

गंगा के वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफ़ाज एक साथ कई कॉलिफॉर्म को नष्ट कर सकते हैं.

नीरी(NEERI) ने यह भी बताया है कि यह कॉलिफ़ाज गंगा की बालू में चिपक कर इसी प्रकार वर्षों तक सुप्त पड़े रहते हैं. जब इन्हें अंदाजा होता है कि आसपास कहीं कॉलिफॉर्म उपस्तिथ है तो यह स्वयं जाग्रित हो कर उस कॉलिफॉर्म को नष्ट कर देते हैं. इसलिए गंगा में पाए जाने वाले इन अद्वितीय कॉलिफाजों के संरक्षण के लिए गंगा मे पायी जाने वाली विशेष बालू, जो इन कोलिफाजों का घर हैं, बचाने की आवश्यकता है.

कांवड़ यात्रा के दौरान लोग गंगा के वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफ़ाज को अपने गाँव ले जाते हैं.

कांवड़ यात्रा की प्रथा गंगा से इन वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफाजों को देश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का एक तरीका हो सकता है. इस यात्रा में लोग गंगाजल से भरा घड़ा अपने गाँव में ले जाते हैं और वहां जाकर शिव को अर्पित करते हैं. जिसके बाद यह पानी बहकर गाँव के तालाबों में मिल जाता है, जिससे हो सकता है कि गंगा के कॉलिफाज तालाब के पानी में मिलकर उसमें मौजूद कॉलिफॉर्म को मारकर पानी को स्वच्छ बना दें.

कॉलिफाज पर प्रभावकॉलिफ़ाज का सृजनपानी की गतिऑक्सीजन की मात्राबद्रीनाथकेदारनाथ| आध्यात्मिक ऊर्जा| झीलटनलटरबाइन|

अब इस पर विचार करते हैं कि क्या जल विद्युत् परियोजना बनाने से इन कॉलिफाज पर प्रभाव पड़ेगा? इन कॉलिफाज का सृजन कैसे होता है, इसका हमें कोई ज्ञान नहीं है. गंगा में यह वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफाज क्यों पाए जाते हैं, नर्मदा और यमुना में यह क्यों नहीं, इसका अभी शोध नहीं हुआ है. हमारा अनुमान है कि इसमें तमाम बातों का योगदान हो सकता है जैसे गंगा के पानी की गति, उसमे ऑक्सीजन की मात्रा, उसमे विशेष वनस्पतियों का गिरना, उसके बहाव में आने वाले पत्थरों में विशिष्ट प्रकार की धातुओं का होना या फिर बद्रीनाथ तथा केदारनाथ की आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रभाव होना.

जलविद्युत परियोजनाओं के जलाशयों में जमा पानी कॉपर और थोरियम को नहीं सोख पाता.

जल विद्युत् परियोजाएं बना कर हम या तो नदी को झील में परिवर्तित कर देते हैं या फिर टनल में डाल देते हैं. इससे आसपास के पत्थरों की जल के साथ रगड़ समाप्त हो जाती है. जिसके कारण नदी द्वारा पत्थरों से कॉपर और थोरियम को सोखना समाप्त हो जाता है. इससे गंगा में कॉलिफाज के रहने लायक बालू नहीं बनती है. गंगा के बहाव में ऑक्सीजन और अध्यात्मिक शक्ति से ही कॉलिफाज बनते हैं. इसलिए जब हम नदी में मौजूद ऑक्सीजन, आध्यात्मिक शक्ति और उसके बहाव को जलाशयों में परिवर्तित तथा टरबाइनों में मथ कर समाप्त कर देते हैं तो हो सकता है कि उसमें कॉलिफाज बनना बंद हो जाए. हमको यह समझना चाहिए कि यह वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफाज गंगा की एक अद्वितीय उपलब्धि है जो पूरे विश्व में और कहीं नहीं है. इसके संरक्षण के लिए यह जरूरी है कि हम गंगा पर जल विद्युत परियोजनाओं को ना बनाये.

टिहरी बांध| स्वयंशुद्धिकरण क्षमतावाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफाज| पानी की गुणवत्तागंगा के विशिष्ट गुण| जलविद्युत परियोजनाओं|

कॉपर और थोरियम से युक्त बालू टिहरी बांध के पीछे जमा हो जाती है.

इन वक्तव्यों के बावजूद, नीरी(NEERI) ने निष्कर्ष निकाला है कि टिहरी बांध के निर्माण से गंगा की स्वयं को शुद्ध करने की क्षमता को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है क्योंकि उन्होंने इन वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफाज की उपस्थिति टिहरी बाँध के नीचे के बहाव में पायी है.  हमारे अनुसार यह उचित निष्कर्ष नहीं है. यह वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफाज आज वहां मौजूद हैं  लेकिन हमेशा नहीं रहेंगे. हमें यह प्रतीत होता है कि यदि पानी के बहाव को बदला जाएगा तो यह निश्चित रूप से इस अद्वितीय बालू, कॉलिफाज तथा पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा.

अब समय आ गया है कि हम महसूस करें कि गंगा का पानी सिर्फ सादा पानी नहीं बल्कि इसमें कुछ विशिष्ट गुण हैं. यदि हम इन वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफाजों को खो देते हैं तो हम अपनी एक अद्वितीय विरासत खो देंगे. इसलिए हमें जलविद्युत परियोजनाओं को बनाने से बचना चाहिए क्योंकि ये वाइड स्पेक्ट्रम कॉलिफाज केवल भारत की ही नहीं अपितु पूरे विश्व की एक अद्वितीय विरासत है.