क्या भारत में नदी जोड़ो परियोजना सफल होगी ?

भारत सरकार| नदी जोड़ो परियोजना| बाढ़| सूखा क्षेत्र| जल आपूर्ति|

भारत सरकार ने जल आपूर्ति हेतु नदी जोड़ो परियोजना को शुरू की है. सरकार की इच्छा है कि जिन नदियों में बाढ़ आती है उसके पानी को जिन नदियों में सूखा रहता है वहां तक पहुंचा दिया जाए. जिससे बाढ़ क्षेत्र में बाढ़ कम आएगी और जो सूखा क्षेत्र है वहां पानी की उपलब्धता हो.

अंतर्राज्य नदी जोड़ो परियोजना| सतलुज| यमुना| कावेरी| पंजाब| कर्णाटक|

ये नदी जोड़ो परियोजना दो प्रकार की होती है – एक अंतर्राज्य है जिसमे एक राज्य की नदी का पानी दूसरे राज्य को दिया जाता है, इसके उदाहरण सतलुज, यमुना और कावेरी हैं.

 

नदी जोड़ो परियोजना (फोटो साभार: इंडियन वाटर पोर्टल)

इस नदी जोड़ो परियोजनाओं में समस्या यह है कि जो दाता राज्य है वह अपनी नदी के पानी को बिलकुल भी छोड़ना नहीं चाहता. जैसे पंजाब में जल भराव हो रहा है फिर भी पंजाब सतलुज के पानी को छोडना नहीं चाहता. इसी प्रकार कर्णाटक कावेरी के पानी को नहीं छोड़ना चाहता है. इसलिए अंतर्राज्य नदी जोड़ो परियोजना बिलकुल भी सफल नहीं होगी क्योंकि कोई भी राज्य आज अपनी नदी के पानी को छोड़ने को तैयार नहीं है और यही कारण है कि आजतक देश में कभी कोई ऐसी परियोजना सफल नहीं हुई है.

बाढ़ का पानी| केन-बेतवा परियोजना| मध्यप्रदेश| भूजल| भूजल पुनर्भरण

दूसरी सम्भावना है कि एक ही राज्य की दो नदियों को जोड़ दिया जाए. तब इस सन्दर्भ में राज्य की ही सरकार को निर्णय लेना होगा कि किस नदी के बाढ़ का पानी किस नदी के सूखे तक पहुँचाना है.

 

  केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (फोटो साभार: द इंडियन एक्सप्रेस)

लेकिन हम समझते हैं कि बाढ़ केवल नुकसानदेह है जबकि ऐसा नहीं है. जब बाढ़ आती है तो उसका पानी चारों तरफ फैलता है जिससे वह भूजल में रिसता है. इससे हमारे भूजल का पुनर्भरण होता है और यही पानी सिंचाई के लिए भी उपयोग किया जाता है.

अक्विफेर्स| बंगाल| भूगर्भ| सिंचाई| वाटर रिचार्ज| सिंचाई में कमी| वैज्ञानिक विश्लेषण

बताते चलें कि एक मीटर की गहराई वाले पानी का रिसाव एक किलोमीटर तक होता है. यानी यदि आप नदी के पास जल भराव कर रहे हैं और भूजल का पुनर्भरण हो रहा है तो यही पानी आपको सौ मीटर की गहराई पर सौ किलोमीटर दूर भी मिल सकता है.

 


चारों और फैला बाढ़ का पानी

इसलिए यह सवाल सिर्फ स्थानीय पानी के पुनर्भरण का नहीं है बल्कि इसका बड़ा विस्तृत क्षेत्र होता है. जमीन के नीचे तालाब होते हैं जिन्हें अक्विफेर्स कहते हैं. यह अक्विफ़र बहुत बडे क्षेत्र में हो सकते हैं जैसे कोई अक्विफ़र बंगाल से लेकर पंजाब तक भी हो सकता है.


भारत के भूगर्भीय अक्विफ़र (फोटो साभार: साइंस डायरेक्ट)

इसलिए जब हम पानी को भूगर्भ में डालते हैं तो पानी चारों तरफ फ़ैल जाता है. इसलिए हमें नदियाँ जोड़ कर पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के स्थान पर जो बाढ़ का पानी है उसका भूगर्भ में पुनर्भरण करना चाहिए तथा जरूरत के समय उस अक्विफ़र के पानी का उसी क्षेत्र में या दूसरे स्थान पर उसका उपयोग करना चाहिए. इससे लोगों को उस बाढ़ का लाभ मिलेगा. जहां तक सूखे क्षेत्रों की बात है वहाँ पर हम वाटर रिचार्ज के ढाँचे जैसे चेक डैम, तालाबों का जीर्णोधार, आदि कार्य करके वहां पर जो उपलब्ध पानी है उसका सदुपयोग कर सकते हैं. हम सोचते हैं कि बाढ़ के पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने से हम सिंचाई बढ़ाएंगे लेकिन वास्तविकता इससे पलट हो सकती है. बाढ़ के क्षेत्र में बाढ़ कम होने से पानी का पुनर्भरण कम होगा और वहां सिंचाई कम होगी जबकि सूखे क्षेत्र में सिंचाई बढ़ेगी इसलिए दोनों का योग वैज्ञानिक विश्लेषण के बिना नहीं किया जा सकता. मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने से सिंचाई में वृद्धि होगी ही यह कहना भी उचित नहीं होगा.

नदी जोड़ो के नुकसान| नदी का चरित्र| पौधे| मछलियां| पर्यावरणीय संघर्ष| नदी के जीवाणु| पुनर्वास| भूमि अधिग्रहण| जैव विवधता|

नदी जोड़ने का दूसरा नुकसान है कि हर नदी का अपना अलग चरित्र होता है. उसमे आसपास विशेष प्रकार के पौधे, भिन्न प्रकार की मछलियाँ होती हैं. उसका पानी भी उस प्रकार के पौधों और मछलियों को पोषित करने के लिए उपयुक्त होता है. जब हम एक नदी के पानी को दूसरी नदी में ले जाते हैं तो हम वहां पर एक पर्यावरणीय संघर्ष पैदा करते हैं. जिससे एक नदी के जीवाणुओं को दूसरी नदी तक पहुंचा कर वहाँ अनावश्यक क्लेश पैदा होता है. इसलिए हमें नदी जोड़ो परियोजनाओं से पूर्णतया विरत रहना चाहिए. इससे न तो सिंचाई बढ़ने के प्रमाण मिलते हैं जबकि इससे पुनर्वास, भूमि अदिग्रहण इत्यादि तमाम समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इसके कारण हमारी जैव विविधता भी प्रभावित होती है.

इसलिए हमको अपनी नदी को सम्मान देते हुए खुद को उसके अंतर्गत ढालकर नदी के साथ सामंजस्य बनाना चाहिए.  इसलिए हमारा सरकार से अनुरोध है कि “नदी जोड़ो परियोजनाओं” को रोकने का त्वरित निर्णय लिया जाये, जो हमारे पर्यावरण लिए अधिक हानिकारक हैं।

 

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