भारत के दिल्ली और मुंबई जैसे प्रमुख शहरों की हवा को साफ करने के लिए केंद्र सरकार नें बड़ी वायु सफाई मशीनों को स्थापित करने का निर्णय लिया है.
अधिकांश वायु प्रदूषण वाहनों या उद्योगों द्वारा उत्पन्न होता है. इस वायु प्रदूषण का जिम्मेदार केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) है. हमारे पास कानून हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और सल्फर जैसी गैसों के स्तर को निर्धारित करते हैं जिन्हें वाहनों और उद्योगों द्वारा उत्सर्जित किया जाता है. लेकिन सीपीसीबी द्वारा इन कानूनों को लागू नहीं किया जाता है. नतीजा यह है कि हमने हवा को प्रदूषित कर दिया है. अब हम इसे साफ करने के लिए बड़ी मशीनों को स्थापित करना चाहते हैं.
यदि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उद्योगों और वाहनों द्वारा प्रदूषण कानूनों का पालन कराया गया होता तो शहरों की हवा स्वयं ही साफ़ और स्वच्छ होती. उदाहरण के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बीजिंग यात्रा के दौरान चीनी सरकार ने बीजिंग के आसपास के सभी प्रदूषण उद्योगों को एक सप्ताह के लिए बंद रहने का आदेश दिया जिससे बीजिंग में हवा तत्काल ही साफ हो गयी थी. यह घटना स्थापित करती है कि प्रदूषण की समस्या वास्तव में प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का पालन नहीं किये जाने की वजह से है जिसके लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बढ़ते हुए प्रदूषण के जिम्मेदार है.
एक संसदीय समिति की रिपोर्ट (यहां देखें) में कहा गया है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक निष्क्रिय शरीर की तरह सिकुड़ कर रह गया है. केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के प्रमुख पद, भारतीय प्रशासनिक सेवाओं या नौकरशाह अधिकारियों द्वारा भरे जा रहे हैं जिनके पास प्रदूषण नियंत्रण गतिविधियों के प्रबंधन की क्षमता और विशेषज्ञता नहीं है.
पर्यावरण मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया था कि राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र पर्यावरणीय संरक्षण प्राधिकरण स्थापित किया जा सकता है जो प्रदूषण नियंत्रण कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार हो. वर्तमान में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय द्वारा संचालित होता है. नतीजतन मंत्रालय उन अधिकारियों को ही नियुक्त करता है जो मंत्रियों और आईएएस अधिकारियों को पसंद हों. सरकार को प्रदूषण रोकने हेतु स्वतंत्र प्राधिकरण बनाना चाहिए जैसा संचार के लिए दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (टीआरएआई) स्वतंत्र रूप से स्थापित किया गया है, जिसने टेलीफोन कंपनियों के विनियमन के मामलों को बहुत प्रभावी तरीके से निपटाया है.
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है (यहां देखें) कि ई-वेस्ट प्रबंधन के नियमों की अधिसूचना के बाद, सीपीसीबी ने उन नियमों के प्रवर्तन के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया है. निष्कर्ष यह है कि सीपीसीबी प्रदूषण नियंत्रण कानूनों को लागू करने में असफल है. (यहां एसजी रिपोर्ट देखें)
यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त शक्तियां नहीं हैं. वे जुर्माना लगाने या बंद करने की नोटिस जारी नहीं कार सकते हैं. देश की न्यायिक प्रणाली इतनी धीमी और भ्रष्ट है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए प्रदूषकों को दंडित करना असंभव है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपने सीमित संसाधनों के साथ प्रदूषण को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं.
हमें सीपीसीबी को एक स्वतंत्र प्राधिकारी बनाना चाहिए और अपराधियों को दंडित करने के लिए पर्याप्त शक्तियां देनी चाहिए जिससे राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप दूर हो जाएगा और सीपीसीबी भी प्रभावी होगा. यदि ऐसा किया जाता है, तो वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकेगा. हवा को साफ करने के लिए बड़ी मशीनों को स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होगी.
इन मशीनों का भी कोई बहुत अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है. इसी प्रकार की मशीन चीन के बीजिंग में स्थापित की गई थी (जैसा कि नीचे दिखाया गया है) जिसके परिणाम अनुकूल नहीं हैं. मशीन की लागत 1 करोड़ रुपये थी. इस मशीन के डिजाइनर और आर्किटेक्ट डेन रूजगार्ड ने कहा है कि “इस मशीन द्वारा बहुत ही छोटे क्षेत्र में ही हवा साफ़ की जा सकती है (लगभग 30,000 घन मीटर). ऐसी छोटी क्षेत्र की तकनीक शहर की हवा को भी साफ करने में सक्षम नहीं है. इस टावर का उद्देश्य है कि हमें वायु प्रदूषण की समस्याओं को भूलना नहीं है अर्थात समाधानों की खोज जारी रखनी होगी”
सही तरीका यह होगा कि हमें सीपीसीबी को स्वतंत्र बनाना है और इसे वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की शक्तियां देना है. इस विकल्प से बचना चाहिए कि पहले प्रदूषण बढ़ने दिया जाय और फिर उसी प्रदूषण को हटाने में निष्प्रभावी मशीनों को स्थापित करने पर खर्च किया जाय.