पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये नदी से कम से कम 50 प्रतिशत पानी पर्यावरण के लिये छोड़ा जाना चाहिये.

1 E1 E

मनुष्य को इस प्रकृति के साथ ही जीना होता है, प्रश्न है कि प्रकृति को हम आकलन कैसे करें तो आईआईटी के समूह ने सुझाव दिया कि यदि नदियां हमारी सही स्थिति में है तो हम मान सकते हैं कि सारा पर्यावरण संतुलन में है,

2 E

क्योंकि भूमि, वायु और पानी तीनों का संबंध नदी से होता है. अब दूसरा प्रश्न उठता है कि नदी के स्वास्थ्य का मूल्यांकन कैसे करें तो उनका कहना था कि यदि नदी की जो श्रेष्ठ मछली है, यदि वह स्वस्थ है तो हम मान सकते हैं नदी स्वस्थ है क्योंकि तब नदी का पानी अन्य उसमें रहने वाले जीव सब स्वस्थ होंगे तभी नदी की मछलीयां भी स्वस्थ होंगी. इस आधार पर आईआईटी एवं अन्य संस्थाओं ने सुझाव दिया की नदी को स्वस्थ रखने के लिये कितना पानी छोड़ा जाना चाहिए इस आधार पर हम तय कर सकते हैं कि जो सिंचाई के लिए नदी का पानी निकाला जाता है और उसके आगे नदी में पानी कम रह जाता है तो सिंचाई के बैराजों से न्यूनतम कितना पानी छोड़ा जाए जिससे की नदी जीवित रहे.

3 E

वर्तमान स्थिति यह है कि गंगा पर हरिद्वार में भीमगोड़ा बिजनौर में फिर नरोरा में और उसके बाद कानपुर में बैराजें बनी हुई है और इन बैराजों के नीचे गंगा में प्राय पानी शून्य प्राय हो जाता है जैसा कि आप गूगल अर्थ की इस तस्वीर में नरोरा के लिए देख सकते हैं. आज विश्व में यह माना जाता है कि नदी को सूखने नहीं देना चाहिए लेकिन प्रश्न उठता है कि कितना पानी छोड़ना अनिवार्य है.

4 E

इस सम्बन्ध में 2006 में इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट श्रीलंका जिसमें भारत सरकार की भी सहभागिता है उसने भारत की तमाम नदियों का आकलन किया जैसा आप इस टेबल में देख सकते हैं और उन्होंने बताया कि गंगा को ए क्लास रिवर बनाने के लिए 67% बी के लिए 44% और सी के लिए 29% पानी छोड़ा जाना चाहिए. उन्होंने यह भी बताया कि इस समय गंगा क्लास सी की नदी है लेकिन यदि गंगा हमारी राष्ट्रीय नदी है तो हमारा प्रयास होना चाहिए कि उसे ए क्लास की तरफ ले जायें अर्थात वर्तमान स्थिति में जो 29% पानी छोड़ने की बात कही गई है उसे बढ़ा के यदि हम 67% पर ले जाए तो हम गंगा को राष्ट्रीय नदी के अनुरूप पानी दे सकेंगे.

5 E

इसके बाद 2011 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया की we issue and enterainmendamus  to the respondents to ensure that 50% of the water release from Narora should reach the main course यानी हम अंतरिम आदेश पारित करते हैं कि गंगा में 50% पानी नरोरा से छोड़ा जाना चाहिए जो उसकी मध्य धारा में बहे.

6 E

इसके बाद वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड ने 2012 में सुझाव दिया.

7 E

कि कानपुर के नजदीक बिठूर में 47% पानी छोड़ा जाना चाहिए जैसा आप इस तालिका में देख सकते हैं. इसके बाद 2014 में आईआईटी के समूह ने गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान बनाया उन्होंने यद्यपि मैदानी गंगा का आकलन नहीं किया था लेकिन उन्होंने ऋषिकेश में पशु लोग बैराज के संबंध में कहा कि इसमें 55% पानी छोड़ा जाना चाहिए हरिद्वार की भीमगोड़ा बैराज की स्थिति मूलतः ऋषिकेश के पशुलोक बैराज के जैसी है इसलिए हम पशुलोक बैराज में जो 55% पानी छोड़ने की बात कही गई है उसे हम हरिद्वार के लिए भी मान सकते हैं.

8 E

इसके बाद 2015 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलोर द्वारा प्रकाशित करंट साइंस पत्रिका में विक्रम सोनी का लेख छपा जिसमें बताया गया कि यमुना के लिए 50% से 60% पानी उसकी जैव विविधता कायम रखने के लिए छोड़ा जाना चाहिए.

9 E

इन तमाम अध्यनों से स्पष्ट है कि वैज्ञानिक दृष्टि से मैदानी गंगा में लगभग 50% पानी छोड़ना चाहिए लेकिन जल संसाधन मंत्रालय ने अक्टूबर 2018  में एक विज्ञप्ति जारी जिसके अनुसार हरिद्वार की भीमगोड़ा बैराज में मानसून के अतिरिक्त समय में 36 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड पानी छोड़ा जाना चाहिए और मानसून के समय 57 क्यूमिक इसी प्रकार बिजनौर आदि बैराजों के आंकड़े दिये गए हैं.  पानी की यह मात्रा केवल 6% बनती है अतः तमाम अध्ययनों के 50% की संस्तुति के बावजूद जल संसाधन मंत्रालय ने केवल 6% पानी छोड़ने की बात की है

10 E

प्रश्न है कि यह पानी क्यों छोड़ा जाए पानी इसलिए छोड़ना चाहिए क्योंकि एक तरफ किसानों को खेती के लिए पानी चाहिए तो दूसरी तरफ मछुआरों को मछली पकड़ने के लिए पानी चाहिए मछलियों को पानी चाहिए कछुओं को पानी चाहिए जो पानी के अंदर जलीय पौधे उगते हैं उनको पानी चाहिए और इसके अलावा जब नदी में पानी बहता है तो वह पूरे क्षेत्र के भूगर्भ के पानी का पुनर्भरण करता है जिससे कि पानी सिंचाई के लिए और ज्यादा उपलब्ध होता है इसलिए यह सोचना की केवल नहर से हम पानी निकाल करके सिंचाई कर लेंगे यह उचित नहीं है हमको किसानों और अन्य जीवों के बीच में संतुलन बैठाना होगा जो कि जल संसाधन मंत्रालय ने नहीं किया है इसके अलावा 2011 का जो हाई कोर्ट का आदेश था जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील अरुण कुमार गुप्ता ने पैरवी की थी वह आदेश आज भी बरकरार है लेकिन उस आदेश के कंटेंट यानी अवहेलना करते हुए सरकार द्वारा 50% पानी नरोरा से नहीं छोड़ा जा रहा है

11 E

इसलिए जरूरत है कि हम गंगा पर सिंचाई के लिए जो पानी निकाला जा रहा है उन स्थानों  पर तत्काल 50% पानी छोड़ना शुरू करें. किसानों को जो इससे पानी कम मिलेगा उसका उपाय यह है कि किसानों को पानी का आयतन के आधार पर मूल्य अदा करने को कहा जाए जिससे कि वह पानी का उपयोग कम करें और उनके ऊपर जो इस पानी के मूल्य का अतिरिक्त बोझ पड़ता है उतना उनके फसल के दाम में वृधि कर दी जाये तो ऐसा करने से एक तरफ किसान को पानी का मूल्य अदा करना पड़ेगा तो दूसरी तरफ किसान को मूल्य अधिक मिलेगा और उसकी भरपाई हो जाएगी लेकिन तब हम आम जनता को महंगा अनाज खरीदना पड़ेगा इसलिए अंततः प्रश्न यह है हम सस्ते अनाज के पीछे भागेंगे अथवा प्रकृति को संरक्षित करते हुए थोड़ा महंगा अनाज स्वीकार करेंगे और मछलियों, कछुओं, पौधों इनको संरक्षित करेंगे जो बहती नदी का सौंदर्य है उसका आनंद लेंगे और नदी में डुबकी लगाने का आनंद लेंगे. तो अंततः हमे तय करना है कि हम केवल अनाज बनाने का साधन मात्र देखेंगे अथवा नदी की जो उच्च कोटि की क्षमताएं हैं जैसे उसका सौंदर्य या उसमें स्नान करने का आनंद या मछलियों की उठखेलियां देखने का आनंद उसके पीछे हम भागेंगे यह हमको निर्णय लेना है और हम जल संसाधन मंत्रालय से प्रार्थना करते हैं कि मनुष्य की ऊंची संभावनाओं को फलीभूत करें और केवल अनाज उत्पादन के लिए नदी को मौत के घाट न उतारें. इस संबंध में मैंने उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी तो उन्होंने आदेश दिया है कि जल संसाधन मंत्रालय को एक मैं पुनः ज्ञापन प्रस्तुत करूं जिसके ऊपर जल संसाधन मंत्रालय निर्णय लें इसके बाद देखते हैं कि क्या होता है.