सिंगोली-भटवाडी परियोजना देश के लिए घाटे का सौदा?

सिंगोली-भटवाडी परियोजना| जलविद्युत परियोजना| मंदाकिनी नदी| केदारनाथ| एलएंडटी उत्तरांचल लिमिटेड| लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड| विष्णुप्रयाग परियोजना| 

उत्तराखंड में 2013 में आई बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त हुआ सिंगोली- भटवाडी बराज 

मंदाकिनी नदी केदारनाथ धाम से बहती है जिस पर सिंगोली-भटवाडी जल विद्युत परियोजना बनाई जा रही है. यह परियोजना 2013 की उत्तराखण्ड बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित हुई थी. यह परियोजना एलएंडटी उत्तरांचल लिमिटेड (L&TU) द्वारा बनाई जा रही है, जो लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड की एक सहायक कंपनी है. उत्तराखंड सरकार ने 26 नवंबर 2009 को एलएंडटी उत्तरांचल के साथ एक समझौता किया था, जिसके अनुसार एलएंडटी उत्तरांचल को 26 नवंबर 2015 तक परियोजना का निर्माण कर उसे शुरू करना था. लेकिन, यह परियोजना 2013 की बाढ़ से प्रभावित हुई थी इसलिए परियोजना में कुछ देरी हुई जो एलएंडटी उत्तरांचल के नियंत्रण में भी नहीं थी.

बद्रीनाथ धाम के नीचे विष्णुप्रयाग परियोजना भी इसी प्रकार 2013 की बाढ़ में प्रभावित हुई थी. इन दोनों ही परियोजनाओं के बैराज बाढ़ में बह गए थे. विष्णुप्रयाग परियोजना की कंपनी के मालिक द्वारा बैराज का पुनर्निर्माण तथा परियोजना को दस महीने की अवधि के भीतर फिर से शुरू कर दिया. इसलिए, हम यह मान सकते हैं कि 2013 की बाढ़ के कारण सिंगोली-भटवाडी में भी देरी लगभग दस महीने की ही होनी चाहिए थी. वास्तव में इसके निर्माण में और कम देरी लगनी चाहिए थी क्योंकि यह बैराज निर्माणाधीन था जबकि विष्णुप्रयाग का बैराज का निर्माण कार्य शुरू होने को था. इसलिए, इसे ध्यान में रखते हुए सिंगोली-भटवाडी परियोजना को 20 नवंबर 2016 तक चालू हो जाना चाहिए था. लेकिन इसे आज तक चालू नहीं किया जा सका है.

उत्तराखंड सरकार| परियोजना को खरीदना| कंपनी की संपत्ति| एलएंडटी उत्तरांचल| उत्तराखंड सरकार को लाभ|    

एलटीयू और उत्तराखंड सरकार के बीच हुए समझौते का एक अंश जिसमे सिंगोली-भटवाडी परियोजना को खरीदने का वर्णन है

उत्तराखंड सरकार के साथ किए गए एक समझौते के अनुसार, यदि कंपनी अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं कर पाती है, जिसमें नियत समय में परियोजना को शुरू करना शामिल है, तो सरकार परियोजना को खरीद सकती है. अगर सरकार ऐसा करती है, तो उसे कंपनी द्वारा बनाई संपत्ति जैसे टरबाइन, वाहन आदि को बाज़ार में बेचकर उसके वास्तविक मूल्य का 75% कंपनी को चुकाना होगा. उदाहरण के लिए यदि संपत्ति 400 करोड़ रुपये में बेची जाती है, तो सरकार द्वारा एलएंडटी उत्तरांचल को कुल बिकी हुई संपत्ति का 75% यानी 300 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा. जिससे उत्तराखंड सरकार को वास्तव में इस परियोजना का 25% यानी 100 करोड़ रुपये का लाभ होगा.

इंडिया एनर्जी एक्सचेंज| बिजली की औसत कीमत| बिजली खरीदना| बिजली कि वर्तमान दर| बिजली का अतिरिक्त भुगतान|

उत्तराखण्ड के लोगों को सिंगोली-भटवाडी परियोजना द्वारा पेश की गई प्रति यूनिट बिजली की दर.

परियोजना ने उत्तराखंड सरकार को 4.25 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली प्रदान करने की पेशकश की है. वहीँ यह बिजली वर्तमान में भारतीय एनर्जी एक्सचेंज में 3.20 रुपये प्रति यूनिट पर उपलब्ध है. भारतीय एनर्जी एक्सचेंज में 2018-19 के दौरान बिजली की औसत कीमत लगभग 3.85 रुपये प्रति यूनिट थी. इसलिए, अगर सरकार अभी भी इस परियोजना को पूरा करना चाहेगी और 4.25 रुपये प्रति यूनिट पर बिजली खरीदना चाहेगी, तो उत्तराखंड के लोगों को प्रति यूनिट 0.40 रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना होगा, जो परियोजना के जीवनकाल तक 161 करोड़ रूपये होगा. 

पुरुलिया पंप स्टोरेज प्रोजेक्ट| पर्यावरणीय लागत| परियोजना की पर्यावरणीय लागत| प्रत्यक्ष लागत| उत्तराखंड की जनता| पानी की गुणवत्ता| जैव विविधता का नुकसान|

पुरुलिया परियोजना के आधार पर सिंगोली-भटवाडी परियोजना की अनुमानित पर्यावरण लागत

इस परियोजना को बंद करने का एक और लाभ पर्यावरण का है जिसके सन्दर्भ में हम पुरुलिया पंप स्टोरेज परियोजना का उदाहरण ले सकते हैं. विद्यासागर विश्वविद्यालय द्वारा इस परियोजना पर किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि परियोजना की प्रत्यक्ष लागत 764 करोड़ रुपये थी, लेकिन अध्ययन में इसकी पर्यावरणीय लागत 5055 करोड़ रुपये पायी गयी. जिसके कारण परियोजना की कुल लागत 5819 करोड़ रुपये थी. इसी प्रकार सिंगोली-भटवाडी परियोजना की प्रत्यक्ष लागत 568 करोड़ रुपये है. यदि हम पुरुलिया परियोजना के समान अनुपात को देखते हुए चलें, तो यह कहा जा सकता है कि सिंगोली-भटवाडी परियोजना की पर्यावरणीय लागत 3433 करोड़ रुपये होगी. इसलिए, यदि सरकार इस परियोजना को खरीदने और बंद करने का निर्णय लेती है, तो उत्तराखंड के लोगों को पर्यावरण के नुकसान से होने वाली 3433 करोड़ रुपये की हानि का भुगतान करने से बचाया जा सकेगा. इन हानियों में पानी की गुणवत्ता में गिरावट, जैव विविधता का नुकसान, लोगों द्वारा अपने मृतकों की अस्थियों को बहती नदी में विसर्जित न कर पाना तथा स्थानीय लोगों को होने वाली बालू और मछलियों की कमी है. इसलिए, अगर उत्तराखंड सरकार द्वारा इस परियोजना को खरीदा जाता है तो उत्तराखंड को कुल लाभ 4115 करोड़ रुपये होगा.  

मन्दाकिनी नदी के मुक्त बहते पानी को सिंगोली-भटवाडी परियोजना द्वारा सुरंग में मोड़ दिया जायेगा
सिंगोली-भटवाडी परियोजना स्थल के क्षेत्र में उगने वाले दुर्लभ फूल
घैरल एक दुर्लभ जानवर है जो सिंगोली-भटवाडी परियोजना क्षेत्र के आसपास पाया जाता है.
सिंगोली-भटवाडी जलविद्युत परियोजना के कारण ये लंगूर अपना निवास स्थान खो देंगे.
रॉयल्टी| रोजगार| उत्तराखंड सरकार| परियोजना द्वारा भुगतान| बिजली की अधिक कीमत| भारी पर्यावरण लागत| 
सिंगोली-भटवाडी परियोजना द्वारा उसके जीवनकाल तक होने वाले लाभ 

दूसरी तरफ सरकार, परियोजना से मिलने वाली 12% रॉयल्टी खो देगी जिसे परियोजना द्वारा उत्तराखंड सरकार को मुफ्त में दिया जाना था. हमारे अनुमान के अनुसार परियोजना के जीवनकाल तक, सरकार को इससे 177 करोड़ रुपये का लाभ होगा. रोजगार से 21 करोड़ रुपये का लाभ और बुनियादी ढाँचे के लाभ की सीमा लगभग 6 करोड़ रुपये आंकी गई है. इसलिए इस परियोजना को चालू रखने से कुल 204 करोड़ रुपये का लाभ होगा.   परियोजना के बंद होने से प्राप्त प्रत्यक्ष लाभ लगभग 361 करोड़ रुपये होगा. जबकि परियोजना को जारी रखने से प्रत्यक्ष लाभ केवल 204 करोड़ रुपये का होगा. इसलिए उत्तराखंड सरकार के लिए इस परियोजना को खरीदना और इसे बंद करना उचित है. यदि इस परियोजना को बंद करने से होने वाले 3433 करोड़ रुपये के पर्यावरणीय लाभ को इसमें जोड़ देते हैं, तो इस परियोजना को बंद करने का पक्ष और अधिक मजबूत हो जाता है.

 उत्तराखंड सरकार के अधिकारी| जलविद्युत परियोजनाएँ| हिमाचल प्रदेश|

हमने इस परियोजना को बंद करने के बारे में उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों के साथ चर्चा की. उन्होंने कहा कि यह संदेश देगा कि उत्तराखण्ड राज्य जलविद्युत परियोजनाएँ नहीं चाहता है. शायद यही रास्ता सही है क्योंकि उत्तराखंड महंगे जलविद्युत से सस्ती सौर ऊर्जा की ओर स्थानांतरित होकर अधिक लाभ कमा सकता है. उच्च लागत के कारण हाइड्रोपावर अब व्यवहार्य नहीं रहे. अधिकारियों ने यह भी बताया कि वे हिमाचल प्रदेश के उदाहरण को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं, जिसने बड़ी संख्या में जल विद्युत परियोजनाएँ विकसित की हैं. यह शायद इसलिए हुआ है क्योंकि ये परियोजनाएँ तब बनी  थी जब इनको बनाने की लागत कम थी और सोलर पावर की लागत ज्यादा थी. मगर आज ये परियोजनाएँ व्यवहार्य नहीं हैं.

इसलिए उत्तराखंड सरकार को इस परियोजना को खरीदना चाहिए और उत्तराखंड के लोगों को उन आर्थिक और पर्यावरणीय लागतों से राहत दिलानी चाहिए, जो इस परियोजना की निरंतरता से बनी रहेंगी.