श्रीनगर परियोजना| जल रिसाव| श्रीकोट| पावर हाउस| डैम| किलकिलेश्वर
विषय श्रीनगर जल विद्युत परियोजना से होने वाले जल रिसाव का है जहाँ नहर को बनाने में इसकी गुणवत्ता बहुत कमजोर रही है. श्रीनगर परियोजना में डैम श्रीनगर से ऊपर श्रीकोट शहर के पास बना है जबकि पावर हाउस श्रीनगर शहर के थोडा सा नीचे किलकिलेश्वर में बना है. इन दोनों के बीच में लगभग चार किलोमीटर की एक नहर बनाई गयी है जो कि पहाड़ के किनारे-किनारे से पानी ले जाती है. डैम से पानी नहर में जाता है और नहर से पावर हाउस में जाता है.
सुपाणा गाँव| पानी का रिसाव| मंगसू गाँव| पानी ओवरफ्लो| NGT| नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल
यह नहर शुरू से ही संकट का कारण बनी हुई है. कुछ दिनों पूर्व से सुपाणा गाँव में नहर के नीचे से पानी का रिसाव होने लगा है. रिसाव होने का अर्थ है कि यह नहर अन्दर से कमजोर है. पानी के रिसाव का किन्ही समय नहर के अन्दर ही अन्दर से लोगों के घरों के अन्दर से भी निकलने की शिकायत आई है. संभव है कि किसी भी समय यह नहर टूट जाए.
इसी प्रकार मंगसू गाँव के पास नहर के दोनों किनारे धंस गए हैं जिससे किनारों की ऊंचाई पर्याप्त नहीं रह गयी है. पानी अधिक आने पर इन किनारों के ऊपर से पानी ओवरफ्लो करने लगता है जैसा कि आप नीचे फोटो में देख सकते हैं.
इस पानी को गाँव में जाने से रोकने के लिए कंपनी नें एक और छोटी नहर बनाई है जिससे यह ओवरफ्लो कर रहे पानी को कम्पनी वापस ले कर जाती है.
इन दोनों प्रकरणों से स्पष्ट है कि परियोजना द्वारा नहर सही रूप में नहीं बनाई गयी है. इस पानी के रिसाव का किन्ही समय नहर के अन्दर ही अन्दर से लोगों के घरों के अन्दर से भी निकलने की शिकायत आई है.
इस सम्बन्ध में गाँव वालों नें उत्तम भंडारी व् विमल भाई के नेतृत्व में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में एक वाद दायर किया (रिपोर्ट देखें) जिसके पश्चात NGT नें जांच के लिए एक कमिटी बनाई जिसने इन कथित तथ्यों का सत्यापन किया (रिपोर्ट देखें).
श्रीनगर परियोजना| कमजोर गुणवत्ता| 2015| सेडीमेंटशन टेंक| जल विद्युत परियोजना
श्रीनगर परियोजना शुरू से ही कमजोर गुणवत्ता का शिकार रही है. लगभग 2015 में इसकी सेडीमेंटशन टेंक धस गयी थी और उससे पानी बाहर आने लगा था जिसकी फोटो आप नीचे देख सकते हैं.
अतः यह माना जा सकता है कि नहर की गुणवत्ता कमजोर है और किसी भी समय नहर के टूटने से हादसा हो सकता है. NGT नें कंपनी को आदेश दिया है कि वह इस समस्या को ठीक करे और सरकारी अधिकारियों की एक कमिटी को कहा है कि इसके ऊपर निगरानी रखें (निर्णय देखें). देखना है कि ये कमेटी इस विषय कितनी गंभीरता दिखाती है. बहरहाल इतना स्पष्ट है कि जल विद्युत परियोजनाओं से अनेक प्रकार से स्थानीय लोगों को कठिनाई हो रही है और इनके अस्तित्व पर विचार किया जाना चाहिए.