पर्यावरणीय प्रवाह के अनसुलझे रहस्य?

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विष्णुप्रयाग परियोजना: अलकनंदा नदी

 

नदी के ऊपर बनी जल विद्युत परियोजनाएं पानी का प्रवाह रोक देती हैं. उनके द्वारा डैम के नीचे कभी-कभी तनिक भी पानी नहीं छोड़ा जाता है. जैसा कि आप ऊपर विष्णुप्रयाग बाँध परियोजना की फोटो में देख सकते हैं. जिसके कारण परियोजना के नीचे नदी पूरी तरह सूख जाती है. परियोजना द्वारा नदी के पानी को टनल के माध्यम से पॉवर हाउस ले जाया जाता है. एनडीए सरकार ने बीते वर्ष 2018 में इस समस्या का सामना करने का प्रयास किया. उन्होंने एक अध्यादेश निकाला जिसमे कहा गया कि जल विद्युत परियोजनाओं को 20 से 30 प्रतिशत पानी आनाव्रत हर समय बिना बिजली बनाये छोड़ना होगा. जिससे कि परियोजना के नीचे नदी में भी कुछ पानी हर समय उपलब्ध हो. प्रश्न यह है कि क्या इतना पानी पर्याप्त होगा?


पानी छोड़ने पर भारत सरकार द्वारा विज्ञप्ति

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सात आईआईटी के समूह ने वर्ष 2015 में गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान  बनाया था. भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दिए इस कार्य में उन्होंने संस्तुति की थी कि परियोजनाओं द्वारा न्यूनतम 20% और 56% पानी छोड़ा जाना चाहिए. यानी जिस समय नदी में पानी कम होता है उस समय 20% और जब नदी में पानी अधिक हो तो उस समय 56% पानी छोड़ा जाना चाहिए. हर परियोजना एवं हर नदी के लिए उन्होंने पानी छोड़ने की मात्रा अलग-अलग बताई थी. इसके बाद केन्द्रीय जल आयोग द्वारा वर्ष 2017 में एक अध्ययन कराया गया और उस अध्ययन में संस्तुति की कि केवल 20-30% पानी छोड़ना पर्याप्त होगा. यानी आईआईटी समूह ने जो 56% न्यूनतम पानी मानसून के समय छोड़ने के लिए कहा था उसे केन्द्रीय जल आयोग के अध्ययन में घटा कर 30% कर दिया गया. इसके बाद नेशनल मिशन क्लीन गंगा ने दिसम्बर 2018 में पुनः एक अध्ययन कराया और इस अध्ययन में आईआईटी समूह द्वारा पूर्व में बताई गयी 20-56% पानी छोड़ने की संस्तुति को दोहराया गया.


न्यूनतम पानी छोड़ने वाली तीन कमेटी की रिपोर्ट

इसका अर्थ यह हुआ कि आईआईटी समूह ने पहले अधिक पानी छोड़ने को कहा, जिसे केन्द्रीय जल आयोग ने कम किया और फिर नेशनल मिशन क्लीन गंगा ने फिर उसे पुनः अधिक छोड़ने की संस्तुति की. लेकिन केंद्र सरकार ने आईआईटी समूह और नेशनल मिशन क्लीन गंगा की बात नहीं मानी और जो बीच में केन्द्रीय जल आयोग की न्यूनतम पानी छोड़ने की संस्तुति थी उसके अनुसार विज्ञप्ति जारी कर दी.

अब प्रश्न यह हो उठता है कि आईआईटी समूह की रिपोर्ट जो पर्यावरण मंत्रालय द्वारा बनायीं गयी, केन्द्रीय जल आयोग की रिपोर्ट जो जल शक्ति मंत्रालय द्वारा बनायीं गयी क्योंकि केन्द्रीय जल आयोग जल शक्ति मंत्रालय का ही हिस्सा है तथा नेशनल मिशन क्लीन गंगा की भी रिपोर्ट जल शक्ति मंत्रालय द्वारा बनायीं गयी क्योंकि वह भी जल शक्ति मंत्रालय का हिस्सा है. यानी जल शक्ति मंत्रालय के दो अंग परस्पर विरोधी बातें कह रहे हैं. जल शक्ति मंत्रालय का ही केन्द्रीय जल आयोग कह रहा है कि 30% पानी छोड़ना पर्याप्त होगा. जबकि जल शक्ति मंत्रालय की ही नेशनल मिशन क्लीन गंगा कह रही है कि 56% पर्तिशत पानी छोड़ा जाना चाहिए. इससे संकेत मिलता है कि जल शक्ति मंत्रालय को इस विषय पर पुनर विचार करना चाहिए क्योंकि जिस रपट के आधार पर उन्होने 30% पानी छोड़ने की बात की है वह रपट न तो आईआईटी समूह द्वारा संस्तुति की गयी है और न ही नेशनल मिशन क्लीन गंगा द्वारा.

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केन्द्रीय जल आयोग की रिपोर्ट में 5 अन्य अध्ययनों का विवरण दिया गया है लेकन दो अध्ययन जोकि अधिक पानी छोड़ने की बात कहते हैं, उनको उस रिपोर्ट में दबा दिया गया. जैसे इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट (IWMI) जोकि श्रीलंका में है, उन्होंने कहा कि यदि हम गंगा को A श्रेणी की नदी मानें तो इसमें 67% पानी छोड़ा जाना चाहिए. यदि इसे B श्रेणी मानें तो 44% पानी छोड़ना चाहिए और यदि हम इसे C श्रेणी मानें तो 28% पानी छोड़ना चाहिए. मगर इस अध्ययन की रिपोर्ट को केन्द्रीय जल आयोग ने अनदेखा कर दिया.


आईडब्लूएमआई(IWMI) रिपोर्ट

इसके अलावा वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड (WWF) ने एक अध्ययन किया और उन्होने 72% पानी छोड़ने की संस्तुति दी. इसे भी केन्द्रीय जल आयोग ने नजरंदाज कर दिया. यानी केन्द्रीय जल आयोग ने उन रपटों का मात्र उल्लेख किया जोकि कम पानी छोड़ने की वकालत करती थी और एक प्रकार से देश को झूठ बोला है कि इसके अलावा कोई रिपोर्ट नहीं है जोकि अधिक पानी छोड़ने की बात करती है.

ए के गोसाईं| एस के जैन| विश्वसनीयता|

अंतिम बात यह है की जिस आईआईटी समूह ने 56% न्यूनतम पानी छोड़ने की बात कही थी उस समूह में तीन सदस्य थे. इन तीनों में दो सदस्य जिनमे से एक प्रोफेसर आईआईटी दिल्ली ए के गोसाईं थे और दूसरे नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाइड्रोलॉजी रूडकी के डायरेक्टर श्री एस के जैन हैं. ये दोनों व्यक्ति केन्द्रीय जल आयोग की रिपोर्ट बनाने वाली तीन सदसीय कमिटी के भी सदस्य थे. यानी इन दोनों वैज्ञानिकों ने आईआईटी समूह के सदस्य के रूप में 56% पानी छोड़ने की वकालत की और इन्हीं दो वैज्ञानिकों ने केन्द्रीय जल आयोग की कमिटी के सदस्य के रूप में 30% पानी छोड़ने की वकालत की. स्पष्ट है की ये दोनों झूठ बोल रहे हैं और इन्होने सरकारी दबाव में आकर अपनी निष्ठा को छोड़ कर सरकार जैसा चाहती थी वैसा ही किया. सरकार को चाहिए इन दोनों वैज्ञानिकों के खिलाफ कठोर से कठोर कदम उठाये जाए और जल शक्ति मंत्रालय को चाहिए कि अपने ही दो अंगों की परस्पर रपटों का हल करने के लिए कदम उठाये.

हमारे अनुसार 20-30% पानी छोड़ा जाना कम है. इसको कम से कम 50% छोड़ा जाना चाहिए. जैसे हमारे संसद में 51% को बहुमत मानते हैं वैसे ही हम यह मान सकते हैं कि नदी की अपनी अश्मिता 51% पानी से स्थापित होती है. इसलिए सरकार को चाहिए कि इन पर्यावरणीय प्रवाह की रपटों पर पुर्विचार करे.

 

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