“महामहिम जी की गंगा”

पोस्ट  विमल भाई

महामहिम जी ने संसद में अपने अभिभाषण में कहा कि सरकार ने 2022 तक गंगा को अविरल और निर्मल बनाने का लक्ष्य रखा है. हालांकि गंगा अपने उद्गम स्थल की मुख्य धारा पर ही बांधों से घिरी हुई है. अलकनंदा को विष्णुप्रयाग एवं श्रीनगर बांधों के पीछे बाँधा गया है, जबकि भागीरथी को मनेरी भाली व् टिहरी जैसे बांधों के पीछे रोका गया है. इसी प्रकार गंगा और इसकी सहायक नदियों को 56 अलग अलग बड़ी परियोजनाओं के पीछे बाँधा गया है.

पूर्व में सानंद स्वामी (फॉर्मर प्रोफेसर जी. डी. अग्रवाल) के अनशन के चलते मनमोहन सरकार ने तीन बड़ी परियोजनाओं – लोहारी नागपाला, पाला – मनेरी और भैरों घाटी पर काम रोककर भागीरथी को सौ किलोमीटर अविरल छोड़ने का आदेश दिया था.

निर्माणाधीन लोहारी नागपाला परियोजना को श्री मनमोहन सिंह जी के कार्यकाल में बंद करवाया गया था

इसी वक्त, कई लम्बी लड़ाइयों के बाद अदालतें भी विषय पर गंभीरता से जवाब देने लगी थी. वर्ष 2008 में भरत झुनझुनवाला और विमल भाई द्वारा कोर्ट में एक अपील फ़ाइल करने के बाद एनजीटी ने अलकनंदा पर प्रस्तावित कोटलीभेल फेज – 1बी को निरस्त करने का फैसला लिया. स्थानीय लोगों ने बांधों से होने वाले नुकसानों को समझते हुए कई  परियोजनाओं के निर्माणकार्य को जमीनी स्तर पर ही रोक दिया. माटू जनसंगठन और भूस्वामी संघर्ष समिति ने मिलकर पिंडर गंगा पर प्रस्तावित देवसारी बाँध को दस वर्षों के लिए रोक दिया है.

लेकिन खनन जैसे मुद्दों पर प्रशाशन पूरी तरह से गंगा विरोधी हो गया है. मातृ सदन हरिद्वार के स्वामी शिवानन्द गंगा पर हो रहे खनन पर कई कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं और अनेक प्रकार से अनशन कर रहे है.

वर्तमान सरकार ने 22 हजार करोड़ के बजट के साथ नमामि गंगे योजना को शुरू तो किया लेकिन उसी समय गंगा पर बड़े जहाज़ों को चलाने और नदी किनारे बड़े बंदरगाहों को बनाने का न्योता भी दे दिया.

रामनगर पोर्ट को गंगा पर जहाजों के रुकने के लिए तैयार किया गया है

वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड आपदा में बांधों द्वारा निभाई गई भूमिका की जांच करने के लिए रवि चोपड़ा समिति का गठन किया. लेकिन रवि चोपड़ा समिति को कमज़ोर साबित करने के लिए सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी द्वारा एक नयी कमिटी का गठन किया गया.

जल संसाधन मंत्री श्री नितिन गडकरी जी ने कहा था कि सरकार ने गंगा पर कोई भी नया बाँध नहीं बनाने का निर्णय लिया था. प्रधानमंत्री कार्यालय ने फरवरी 2019 के अंत में गंगा नदी पर बांधों के मुद्दे पर एक बैठक भी की थी. सात निर्माणाधीन बांधों की स्थिति को देखने के लिए एक टीम भी भेजी गई थी. समिति साइटों पर भी गई, लेकिन इसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है. पर्यावरण मंत्रालय को इस रिपोर्ट के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर करना था, जो उसने अभी तक नहीं किया है.

यही बात मातृ सदन के युवा संन्यासी ब्रह्मचारी आत्ममोधानंद द्वारा सरकार से प्राप्त पत्र में कहा गया था जो स्वामी सानंद जी के संकल्प को पूरा करने के लिए 194 दिनों के उपवास पर बैठे थे. सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों के आधार पर उन्होंने अपने उपवास को विश्राम दिया. हालांकि, 16 जून को, मातृ सदन ने सरकार को दो महीने का समय दिया जिसके बाद उपवास फिर से शुरू किया जाएगा.

महामहिम जी की सरकार के मुखिया 2014 वाले ही हैं. अब नया कार्यकाल हासिल किया है. तो क्या वह सच में गंगा के बारे में कुछ ठोस करेंगे या महामहिम के शब्दो और उनके पद की गरिमा को भी गिरायेंगे?

 

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विमल भाई – माटू जनसंगठन (1988 से उत्तराखंड में गंगा-यमुना घाटी में पर्यावरण व जन हक के लिए कार्यरत).