गौ, गंगा और गायत्री सनातन संस्कृती का आधार है. हालांकि गाय पर सरकार कारगर साबित हुयी है जो होना भी चाहिए. सरकार गौवंश वध रोकने के लिए सख्त दिखती है जिसका हम खुले मन से स्वागत करते हैं लेकिन गाय की तरह गंगा भी सनातन संस्कृति का आधार है. जिस प्रकार गाय पूजनीय है उसी प्रकार गंगा भी आध्यात्म की पावन प्रतीक है. करोड़ो लोगों के आस्था का प्रतीक होने के बावजूद गंगा की अवहेलना हो रही है. गंगा की महिमा युगों युगों से चली आ रही है. गंगा की धारा हिमालय के जिस मार्ग से आती है वह मार्ग दिव्य औषधियों व वनस्पतियों से भरा हुआ है इस कारण गंगाजल को अमृततुल्य माना जाता है.गंगाजल को भारतीय हिन्दू धर्म में ब्रह्मद्रव माना जाता है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने गंगा को मुक्ति दायिनी कहा है :
दरश, परस, मज्जन अरु पाना | हरहिं पाप, कह वेद पुराना||
नदी पुनीत अमित महिमा अति | कही न सकई सारदा बिमल मति|| (रामचरितमानस: बालकाण्ड 34)
अर्थात गंगा के दर्शन , स्पर्श , स्नान और पान से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते है.यह नदी बड़ी पवित्र है, इसकी महिमा अनंत है, जिसे विमल बुद्धि वाली सरस्वती भी नहीं कह सकती.
लेकिन आज हरिद्वार के पास भीमगौड़ा से औसतन जल निकाल दिया जाता है. उस से आगे जो गंगा रह जाती है वो नालों का पानी और दूसरी नदियों का पानी है. ठीक इसी प्रकार अन्य जगह जल विद्युत परियोजनाओ के चलते गंगा में पानी नहीं रह गया है. जिसके कारण गंगा की आध्यात्मिक शक्ति नष्ट हो रही है. हालांकि गंगा के प्रदुषण पर सरकार कार्यरत जिसका हम स्वागत करते हैं लेकिन गंगा का धार्मिक महत्व प्रदुषण कम करने मात्र से नहीं होगा. गंगा को अविरल बहने देने होगा. गंगा की वर्तमान में समस्याएं निम्नवत हैं:
- सिंचाई – हरिद्वार के पास भीमगौड़ा से लगभग पूरा पानी सिंचाई के लिए निकाल दिया जाता है.
- जल विद्युत परियोजनाए – विद्युत् परियोजनाओ के नाम पर गंगा की अविरल धारा को बाधित किया जा रहा है. वर्तमान में मौजूद कई बड़े बांधों के अलावा गंगा पर नए बांधों की स्वीकृति दी जा रही है. जो गंगा के जीवन को संकट में डाल देगा.
- खनन – गंगा की मिटटी में निहित तत्व खनन के कारण नष्ट हो रहे हैं. खनन से गंगा की जलधारा प्रभावित हो रही है.
हम मोदी जी से आग्रह करते हैं की गाय की तर्ज पर गंगा के आध्यात्मिक प्रभाव के सरंक्षण के लिए :
- गाय की तर्ज पर गंगा के लिए आन्दोलन शुरू करें.
- प्रदुषण के साथ साथ सिंचाई और जल विद्युत् परियोजनाओ के विकल्पों पर विचार करें.