आत्म्बोधानंद जी एक विलक्षण प्रतिभा वाले व्यक्ति हैं, जो कि दक्षिण भारत के मूल निवासी हैं| अंतःप्रेरणावश इन्होने कंप्यूटर साइंस कि शिक्षा 21 वर्ष कि उम्र में छोड़कर गंगा किनारे स्थित मत्रसदन में सन्यास ले लिया| उनमे माँ गंगा कि प्रेरणा जाग्रत हुई उन्होंने संकल्प किया कि माँ गंगा कि अविरल धारा को स्थापित किये बिना देशवासियों का कल्याण नहीं होने वाला|
सानंद स्वामी की तपस्या से वे प्रभावित हुए आत्म्बोधानंद जी नें पाया कि देश कि सरकार असंवेदनशील है फिर भी मैं गंगाजी के लिए तपस्या करूंगा, गंगा कि अविरल धारा के लिए चाहे मुझे अपने प्राण न्योछावर करने पड़ें| इसी संकल्प के साथ आज उन्हें उपवास करते हुए 108 दिन पूरे हुए
मित्रों हमें आत्म्बोधानंद कि तपस्या में सहायक बनकर सरकार से मांग करनी चाहिए कि वे पहाड़ों से आ रही गंगा पर बांधो के निर्माण पर तत्काल रोक लगाकर गंगा कि अविरलता स्थापित करें| गंगा अविरल होगी तो आधी पूर्णिमा के स्नान के लिए पर्याप्त गंगाजल उपलब्ध होगा|
इसके सन्दर्भ में 25 जनवरी से प्रतिदिन जंतर मंतर पर धरना और पूरे देश भार में धरना और जागरूकता रैलियाँ कि जा रही है|